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________________ वाहन विमल नृपति उपकारी, विमलादेवी गुण आचारी । पुष्पोत्तर तजि जनम सो लीनो, जेठ वदी छठ दिन शुभ कीनो ॥११॥ ॐ ही ज्येष्ठकृष्णषष्ठीदिने गर्भमंगलमंडिताय श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यम् निर्वपानीति स्वाहा । तजत भए महाशुक्र सु नाका, दिन आषाढ़ वदि छठ हित ताका । राजा श्रीवसुपूज्य पियारे, देवी विजया कूख सिधारे ॥१२॥ ॐ हीं आषादकृष्णषष्ठयां गर्भमंगलमंडिताय श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय अय॑म् निर्वपामीति स्वाहा । जेठ वदी दशमी दिन भारी, स्वर्ग तजो बारम सहस्रारी । कृतवर्मा राजा त्रिय पाये, श्यामा नाम कूख पधराये ॥१३॥ ॐ ही ज्येष्ठकृष्णदशम्यां गर्भमंगलमंडिताय श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा । कार्तिक वदि परमा दिन खासा, पुष्पोत्तर को तजकै बासा । सिंहसेन बड़भागी ताता, कूख बसे जयश्यामा माता ॥१४॥ ॐ ह्रीं कार्तिक कृष्णप्रतिपहिवसे गर्भमंगलमंडिताय श्रीअनन्तनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा राजा भानु भयो उत्साहा, सुवृतादेवी सती सु आहा । ता उर सर्वारयतें आये, आठे सुदि वैशाख बताये ॥१५॥ ॐ ही वैशास्वशुक्लाष्टम्यां गर्भमंगलप्राप्ताय श्रीधर्मनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा । भादव वदि सातें व्रत भारी, सर्वारथसिधि तज गुणधारी । विश्वसेन राजा अति प्यारी, आइराउर आये सुखकारी ॥१६॥ ॐ ही भादपदकृष्णसप्तम्यां गर्भमंगलमंडिताय श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा । सावन वदि दशमी जग जाने, सरवारथसिधितें सु प्रयाने । सूरसेन राजा गुणरासा, श्रीमति मातु कूख सुख वासा ||१७|| ॐ ह्रीं श्रावणकृष्णदशम्यां गर्भमंगलप्राप्ताय श्री कुन्थुनाथ जिनेन्द्राय अय॑म् निर्वपामीति स्वाहा । अपराजित विमान तज आए, माता मित्रा कूख बसाए । फागुन सुदी तीज सुखकारी, नृपति सुदर्शन महिमा भारी ॥१८॥ ॐ ही फाल्गुनशुक्लतृतीयायां गर्भमंगलप्राप्ताय श्रीअरनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा । राजा कुम्भराय व्रतवानी, तासु प्रिया सुप्रभावति रानी । अपराजित विमान तज डेरा, चैत्र सुदी परमा शुभ वेरा ॥१९॥ ॐ ह्रीं चैत्रशुक्लप्रतिपहिने गर्भमंगलमंडिताय श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय अय॑म् निर्वपामीति स्वाहा । प्रानत स्वर्ग त्याग जिनराजा, सावन वदी दोज सुखसाजा । तात सुमित्र सु विजया माई, जनन लयो त्रिभुवन के साई ॥२०॥ ॐ हीं श्रावणकृष्णद्वितीयायां गर्भमंगलप्राप्ताय श्रीमुनिसुव्रतजिनेन्द्राय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा । १६४] [प्रतिष्ठा-प्रदीप] Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002630
Book TitlePratishtha Pradip Digambar Pratishtha Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1988
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
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