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________________ प्रत्येक पूजा चौपाई दोज अषाढ़ कृष्ण पखवारा, सरवारथसिधिसों अवतारा । नाभिराय के घर सुखदाये, मरुदेवी के उर में आये ॥१|| ॐ हीं आषाढकृष्णद्वितीयादिने गर्भमंगलप्राप्ताय श्रीऋषभदेवाय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा । जेठ अमावस वदि दिन सारा, विजय विमान त्याग अवतारा। जितशत्रू घर त्रिय सुखधामा, विजया कूख बसे अभिरामा ॥२॥ ॐ हीं ज्येष्ठकृष्णाऽमावस्यायां गर्भमंगलप्राप्ताय श्रीअजितजिनेन्द्राय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा । फागुन सुदी आठे दिन खासा, ग्रैवेयक को तजकर वासा । नृप जितारि रमणी गुण सारे, नाम सुसेना गर्भ पधारे ||३|| ॐ ह्रीं फाल्गुनशुक्लाष्टम्यां गर्भमंगलप्राप्ताय श्रीसम्भवजिनेन्द्राय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा । विजय विमान त्याग थिति भाना, सुदि वैशाख षष्टमी ठाना। संवरराय त्रिया गुन खरे, सिद्धार्था के उर अवतरे ॥४॥ ॐ हीं वैशाखशुक्लषष्ठीदिने गर्भमंगलमंडिताय श्रीअभिनन्दनजिनेन्द्राय अय॑म् निर्वपामीति स्वाहा । सावन सुदि दोयज दरसाये, विजय विमान त्यागकर आये। नृपति मेघप्रभ तिय सुखकारा, नाम मंगला उर अवतारा ।।५।। ॐ हीं श्रावणशुक्लद्वितीयादिने गर्भमंगलप्राप्ताय श्रीसुमतिनाथजिनेन्द्राय अय॑म् निर्वपामीति स्वाहा | माघ बदी छठ दिन अभिरामा, ऊरध ग्रैवेयक तज धामा । धारनीश राजा सुख पाये, मात सुसीमा के उर आये ॥६॥ ॐ ह्रीं माघकृष्णषष्ठीदिने गर्भमंगलप्राप्ताय श्रीपप्रभजिनेन्द्राय अय॑म् निर्वपामीति स्वाहा | भादव सुदि छठ मंगलकारी, सुप्रतिष्ठत राजा गुणधारी । माता पृथ्वी के उर आए, मध्यम ग्रैवेयक तैं चाए ॥७॥ ॐ ही भाद्रपदशुक्लषष्ठीदिने गर्भमंगलमंडिताय श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यम् निर्दपामीति स्वाहा । चैत वदी पंचमी शुभ थानै, वैजयंत तजिकैं सो विमानै । मात सु लक्ष्मणा के उर आए, महासेन राजा मन भाए ॥८॥ ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णपंचम्यां गर्भमंगलप्राप्ताय श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा । आरनसे तजकर परजायो, रामादेवी के उर जायो । नृप सुग्रीव महा उतसायो, फागुनवदि नवमी दिन गायो ।।९।। ॐ हीं फाल्गुनकृष्णनवम्यां गर्भमंगलप्राप्ताय श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय अय॑म् निर्वपामीति स्वाहा । चैत्र वदी आट तिथि खासी, अच्युत स्वर्ग तजकें सुखरासी। दृढरथ भूप सुनंदा देवी, उपजे कूख सबन सुख लेवी ॥१०॥ ॐ हीं चैत्रकृष्णाष्टम्यां गर्भमंगलमंडिताय श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा । [प्रतिष्ठा-प्रदीप] [१६३ _Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002630
Book TitlePratishtha Pradip Digambar Pratishtha Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1988
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
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