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________________ अर पूर्ण शशि के देखने से जगत् जन सब सुख करें। वर सूर्य से वह हो प्रतापी कुंभ युग से निधिपति ॥ सुर को देखने से सुभग लक्षण धार होवे जिनपति । युगमीन खेलते देखने से हे प्रिये चित धर सुनो ।। होवे महा आनन्दमय वह पुत्र अनुपम गुण सुनो । सागर निरखते जगत् का गुरु सर्वज्ञानी होयगा ।। वर सिंह आसन देखने से राज्य स्वामी होयगा । अर सुर विमान सुफल यही वह स्वर्ग से चय होयगा ।। नागेन्द्र भवन विशाल से वह अवधिज्ञानी होयगा । बहुरत्न राशि दिखाव से वह गुण खजाना होयगा । वर धूप रहित जू अग्नि से वह कर्म ध्वंसक होयगा । वर वृषभ मुख परवेश फल, श्रीवृषभ तुझ वपु अवतरे । हे देवि तू पुण्यात्मा आनन्द मंगल नित भरे ।। (प्र.सं.) देवियों व माता के प्रश्नोत्तर नोट :- माता की जगह वही मंजूषा पहले से ही टेबिल पर स्थापित करें । प्रतिष्ठाचार्य प्रश्नों का उत्तर समझा देवें । देवियों से प्रश्न कहलावें- (ध्यान रखें कोई पलंग पर सचेतन माता बनाकर न बैठावें।) १. श्री देवी- प्रश्न : माता इस संसार में शरण भूत है कौन । __मम शंका वारण करो खोल आपको मौन ॥ उत्तर : निश्चै निज आतम शरण, अर्हदादि उपचार । आन न दूजो है शरण, यह मन में निरधार ।। २. ही देवि- प्रश्न : माता इस संसार में कौन अपूरव चीज। भव भय नाशक है, कहो मंगलकारी बीज ।। उत्तर : वीतराग विज्ञान है आत्मधर्म सुखमूल । स्वसंवेदन के जहाँ खिले मनोहर फूल ।। ३. धृति देवी- प्रश्न : जिसके हो वह सम्पदा पुत्र पौत्र परिवार । क्या वो सुखिया है नहीं, भोगे भोग अपार ।। उत्तर : इन्द्रधनुष सी सम्पदा स्वारथ मय परिवार। राग मूर्छा रहित ही, है सुखिया संसार । ४. कीर्ति देवी- प्रश्न : माने रिपु को मित्र समान ऐसा जग में कौन अजान । उत्तर : मोही जन परिवार लखाय, माने हितू सदा सुखदाय । [प्रतिष्ठा-प्रदीप] [१५९ _Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002630
Book TitlePratishtha Pradip Digambar Pratishtha Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1988
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
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