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प्रातः गर्भ कल्याणक का उत्तर क्रिया दृश्य (१)
नोट- प्रतिष्ठा चबूतरे पर भीतर एक परदा लगावें (जिसमें सिंहासन पर यज्ञनायक - यज्ञनायिका विराज रहे हों) और बाहर सभासद बैठे हों । बीच में छोटे सिंहासन पर मंजूषिका रख देवें ।
मंगलाचरण - (प्रातःकाल देवियों द्वारा मंगलगीत) अरहंत सिद्धाचार्य पाठक साधुपद वन्दन करें । निर्मल निजात गुण मनन कर पाप ताप शमन करें | अब रात्रितम विघटा सकल यह प्रात होत सुकाल है । भानु उदयाचल से आया नभ किया सब लाल है || पक्षी मनोहर शब्द बोले गंध पवन चलात है । चहुं ओर है भगवान सुमरण वह प्रफुल्लित गात है | बाजे बजें रमणीक माता गीत मंगल हो रहे ।
है कर्म नाशन समय सुंदर लाभ निज सुख लीजिये ॥
नोट- पूर्व रात्रि को देवियों का जो दृश्य था वही यहाँ दिखलाया जावे । १६ स्वप्नों का उल्लेख कर प्रतिष्ठाचार्य द्वारा क्रमशः उनका फल बतलाया जावे ।
नोट- महाराज व मरुदेवी का पार्ट यज्ञनायक व यज्ञनायिका कर सकते हैं, परन्तु वे माता ने या महाराज ऐसा कहा, ऐसा कह देवें । अन्य को प्रतिष्ठाचार्य समझा देवें ।
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जिये शयन उठ जगत प्यारी, बिनती हम कर रहे ॥ है समय सामायिक मनोहर ध्यान आतम कीजिये ।
महारानी मरुदेवी ने महाराज से इस प्रकार कहा
नाथ ! पिछली रात में हम सुपन सोलह देखिया । गज, बैल, सिंह, सुदेवि कमला न्हवन करत हि पेखिया ।। द्वय पुष्पमाल, सुचन्द्र पूरण, सूर्य, सुवरण कलश दो । युग मीन सरवर कमल युत सागर सु सिंहासन भलो || रमणीक स्वर्ग विमान उतरत नाग भवन सु आवतो । सुरतन राशि सुक्रांति पूरण अगनिधूम न पावनो ॥ तब अन्त में इक वृषभ मेरे मुख प्रवेश करत भया । इनको सुफल कहिये प्रभु मुझ दीन पर करके दया || महाराजा नाभिराय ने महारानी मरुदेवी से स्वप्नों के फल इस प्रकार कहे गज देखने से देवि तेरे पुत्र उत्तम होयगा । वर वृषभ का है फल यही वह जगतगुरु भी होयगा ॥ पुष्पमाला से वह उत्तम तीर्थ करता होयगा । कमला हवन का फल यही सुर गिरिन्हवन सुरपति करें |
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[ प्रतिष्ठा-प्रदीप ]
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