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नोट:- इन्हें कूट कर गर्म जल में मिलावें और छान कर कलशों में भर लेवें।
१. ॐ ह्रीं पलाशादि पादप पल्लव कलशैः जिन बिंब शुद्धिं करोमि । २. ॐ ह्रीं सहदेव्यादिदिव्यौषधि कलशैः जिन बिंब शुद्धिं करोमि । ३. ॐ ह्रीं चन्दनादि सुगंधित कलशैः जिन बिंब शुद्धिं करोमि । ४. ॐ हीं कंकोलादि सुगंधित द्रव्य क्वाथ कलशैः जिन बिंब शुद्धिं करोमि ।
___ (वसुनंदि प्रति. १४९, श्लो. ७३) लवंगैलावचाकुष्ठं कंकोलजाति पत्रिका । सिद्धार्थ नंदनाद्यैश्च गंध द्रव्य विमिश्रितैः ।।
तीर्थाम्बुनिभृतैः कुंभैः सर्वौषधि समन्वितैः । मंत्राभिमंत्रितैर्जेनी प्रतिमामभिषिंचयेत् ।। (वसुनंदि ८४-८५)
सर्वौषधि द्वारा प्रतिमाओं की शुद्धि करें "ॐ उसहाय दिव्यदेहाय सज्जोजादाय महप्पण्णाय अणंतचउट्ठयाय परमसुहपइट्ठियाय णिम्मलाय सयंभुवे अजरामरपरम पद पत्ताय चउमुह परमेट्ठिणे अरहंताय तिलोयणाणाय तिलोयपूजाय अट्ठदिव्वदेहाय देवपरिपूजिताय परमपदाय मम इत्थिभिसण्णिहिदाय स्वाहा ॥” इस मन्त्र को ७ बार बोलते हुए ७ बार ही सौधर्मेन्द्र से प्रतिमाओं को स्पर्श करावें।
"ॐ अर्हद्भ्यो नमः । केवललब्धिभ्यो नमः । क्षीर स्वादुलब्धिभ्यो नमः । मधुरस्वादुलब्धिभ्यो नमः । संभिन्न श्रोतृभ्यो नमः । पादानुसारिभ्यो नमः । कोष्ठ बुद्धिभ्यो नमः । बीज बुद्धिभ्यो नमः । सर्वोषधिभ्यो नमः । परमावधिभ्यो नमः । ॐ ह्रीं वल्गु-वल्गु निवल्गु निवल्गु सुश्रवण महाश्रवण ॐ ऋषभादि वर्धमानांतेभ्यो वषट् संवौषट् स्वाहा।"
(उक्त जिन मन्त्र को बार बोलकर प्रतिमाओं को स्पर्श करावें) ॐ क्षीरसमुद्रवारि पूरितेन मणिमयमंगल कलशेन भगवदर्हत् प्रतिकृति स्नापयामः ।
(उक्त मन्त्र से प्रतिमाओं को शुद्ध जल से धोयें) ॐ नमो वृषभाय सर्वजन हितंकराय परमपुनीताय घे घे स्वाहा।
(उक्त मन्त्र से चन्दन का लेप प्रतिमाओं पर करावें) ॐ नमोऽहंत परमेष्ठिभ्यः अप्रतिचक्रे फट विचकाय झौं शौं ब्रज ब्रज स्वाहा।
उक्त मन्त्र से स्वच्छ वस्त्रों से सर्व बिंबाच्छादन करावें। निम्नलिखित मन्त्र से मंजूषिका में विधिनायक प्रतिमा स्थापित करावें
ॐ नमोऽस्तु केवलिने परमयोगिने अनंत विशुद्ध परिणाम परिस्फुरच्छुक्लध्यानाग्नि निर्दग्ध कर्म बीजाय प्राप्तानंत चतुष्टयाय 'सौम्याय शांताय मंगलाय वरदाय अष्टादश दोष रहिताय स्वाहा।
[प्रतिष्ठा-प्रदीप]
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