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सर्वर्तुजानि फलपुष्पविलेपनानि गंधासनोपकरणानि पवित्रितानि ।
संस्थापयंत्वधिगृहं जिनमातृकाया भोगोपभोग रुचिराणि मनोहराणि ।। वस्त्राभूषण मंडन सर्वर्तुज फल चन्दन मालासनादि मनोहर द्रव्याणि स्थापयामि ।
(पुष्पांजलिः) ॐ ह्रीं श्री ही धृति कीर्ति बुद्धि लक्ष्मी शांति पुष्ट्यादि दिक्कुमार्य अत्रागत्य जिन मातृसेवां कुरुत कुरुत स्वाहा।
(पुष्पांजलिः) इन्द्रादि दिक्पति नियोग कृतावनानि । स्थानानि यस्य परितः सुपरिष्कृतानि ।।
तद्राजसद्मनि पुरन्दर दत्त शिष्टा । रत्नानि वर्षयतु गुह्यक राजराजः ॥ ॐ ही धनाधिपते राजप्रासादे रनवृष्टिं मुञ्चतु स्वाहा । (रत्न वर्षा करावें) ॐ ह्रीं भूर्भुवः श्रीं अर्ह मातृ गर्भाशय पवित्रं कुरु कुरु इवीं क्ष्वी हां ही हूं हौं हः स्वाहा । (इस मन्त्र से मंजूषा को इन्द्राणी व देवियों द्वारा सर्वौषधि से शुद्ध करावें व उसमें स्वस्तिक लिखें)
मंजूषा में मातृका यंत्र स्थापित करें। नीचे लिखे मन्त्र को २७-२७ बार पढ़ लेवें। ॐ नमोऽहं अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल ल ए ऐ ओ औ अं अः क ख ग घ ङ च छ ज झ ट ठ ड ढ ण त थ दध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह ही क्लीं क्रौं स्वाहा । ॐ हां वषट् णमो अरहंताणं संवौषट् ओं ढलूं क्ली द्रां द्रीं ह्रीं क्रौं ओं सः अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल ल ए ऐ ओ औ अं अः क ख ग घ ङ च छ ज झ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह ही नमः स्वाहा।
यहाँ सिद्ध, चारित्र, शान्ति भक्ति पाठ करें। नोट:- विधिनायक प्रतिमा को षट्कोण शिला पर स्थापित कर विधि करें।
धूली कलशाभिषेक व आकार शुद्धि गोश्रृंगाद्गजदंताच्च तोरणात् कमलाकरात् । नगाद्वा सिद्धतीर्थाच्च महासिन्धु तटात् शुभात् ।। आनीय मृत्तिकां क्षिप्त्वा कुंभे तीर्थांबु : संभृते ।
तेन कुर्याज्जिनाचार्या धूलीकुंभाभिषेचनम् ।। (वसुनंदि प्रति. ७०-७१) गोग- कुदाली, गजदंत- कुश द्वारा तीर्थमृत्तिका व जल से मूर्ति की शुद्धि करें।
प्रतिमाओं की चार कलश से शुद्धि १. कलश- शमी, पलाश, आम्र, अशोक के सूखे पत्र । २. कलश- सहदेवी, अडूसा, शतावरी, गिलोय। ३. कलश- चंदन, अगर, तगर, अगुरु । ४. कलश- कंकोल, लौंग, जायफल, इलायची |
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[प्रतिष्ठा-प्रदीप]
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