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प्रतिष्ठा प्रदीप
द्वितीय भाग
पंचकल्याणक व क्रियायें श्री विधिनायक ऋषभदेव तीर्थंकर के पंचकल्याणक में
गर्भकल्याणक की पूर्व क्रिया रात्रि || बजे
मंगलाचरण नमामि नाभिनंदनं भवादिव्याधि कन्दनम् । समाधि साध चंदनं शतिन्द वृन्द वंदितम् । अशेषक्लेशभंजनं मदादिदोषभंजनम् । मुनिंदकंजरंजनं दिनं जितं अमंदितम् ॥ अनंतकर्मछायकं प्रशस्त शर्मदायकम् । नमामि सर्वलायकं विनायकं सुवंदितम् । समस्त विघ्ननाशिये प्रमोद को प्रकाशिये । निहार मोहि दास से प्रभु करो अफंदितं ।।
रात्रि को इन्द्रसभा दृश्य-१ १. सौधर्म- बोलिये श्रीभगवान् ऋषभदेव की जय ।
इन्द्राणी- स्वामिन् ! आज आपने यह जयघोष क्यों किया? मुझे आश्चर्य इसलिए हो रहा है कि आप कोई बात बिना कारण नहीं कहते । इसमें कोई गूढ़ रहस्य अवश्य है।
सौधर्म- आज का दिन इस सुधर्मा सभा के लिए महान् हर्ष का है कि मध्यलोक में सभी द्वीपों के मध्य में स्थित जम्बुद्वीप भरत क्षेत्र आर्यखंड में इस अवसर्पिणी युग के तृतीय काल के अन्त में प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव आज से १५ माह पश्चात् जन्म धारण करने वाले हैं।
(कुबेर से)- प्रिय धनद! तुम सर्वप्रथम उस नगरी की सांगोपांग रचना करो, जहाँ तीर्थंकर प्रभु का जन्म होगा।
कुबेर- स्वामिन् ! आपकी आज्ञा शिरोधार्य है । अपनी शक्ति अनुसार मैं सुन्दर नगरी की रचना करूँगा।
सौधर्म- वह नगरी भारतवर्ष के कौशल देश में अयोध्या होगी, जहाँ १५वें कुलकर श्री नाभिराय और माता मरुदेवी के राजमहल के प्रांगण में ऋषभदेव के गर्भ में आने के छ: माह पूर्व से रत्नों की वर्षा करनी होगी।
(देवियों से)- श्री ह्रीं धृति, कीर्ति, बुद्धि, लक्ष्मी, शांति और पुष्टि आदि अष्ट कुमारिका देवियो ! तुम्हें भी माता की सेवा के लिए तैयार रहना है।
(देवियाँ खड़ी रहकर हाथ जोड़ते हुए कहती हैं) आपकी आज्ञा हमें शिरोधार्य है।
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[प्रतिष्ठा-प्रदीप]
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