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प्रतिष्ठा प्रदीप
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आचार्य या गुरु से विधि विधान और मंत्र सीखे बिना जो लोग स्वयं ही पढ़कर प्रतिष्ठाचार्य बन जाते है, उनकी क्रिया की निन्दनीय और उन्हें अक्षर म्लेच्छ तक कहा है।
-आचार्य विद्यानन्द
द्वितीय भाग
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