SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीपादं जिनचन्द्रशान्ति शरणं, सद्भक्तिमानेऽपि ते । भूयस्तापहरस्य देव भवतो भूयात्पुनदर्शनम् ॥ ॐ ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं हः असि आ उ सा अहंदादि नवदेवानां (पूजाविधि) विसर्जनं करोमि अपराध क्षमापनं भवतु। जः जः जः। नोट :- वसुनंदि श्रावकाचार प्रतिष्ठा विधान, पृ. ११२, प्रतिष्ठा तिलक, पृ. २२०; जयसेन प्र., पृ. ३०६ एवं आशाधर प्र. १२२ पूजा में अर्हदादि नवदेवों के विसर्जन का मन्त्र उपलब्ध है। यज्ञदीक्षा चिन्ह विसर्जन यज्ञोचितं व्रत विशेष वृतोह्यतिष्ठन् । यष्टा प्रतीन्द्र सहितः स्वय मे पुरावत् ॥ एतानि तानि भगवज्जिनयज्ञ दीक्षा । चिह्नान्यथैषविसृजामि गुरोः पदाग्रे ॥ इति यज्ञोपवीतादि यज्ञ चिह्नानि गुरु समीपं संन्यस्य नमस्येत् । (यज्ञोपवीत पाटे पर रख देवें)। नोट:- प्रतिष्ठामंडप में विराजमान की गई पूर्व प्रतिष्ठित प्रतिमाओं को शांतियज्ञ के पश्चात् रथयात्रा या वेदीजी के जुलूसपूर्वक विराजमान करना चाहिये । उक्त शांतियज्ञ वेदी कलश ध्वजा प्रतिष्ठा या बिंब प्रतिष्ठा के पश्चात् होता है। प्रतिष्ठा का महत्त्व अतो महाभाग्यवतां धन सार्थक्य हेतवे । नान्योपायो गृहस्थानां चैत्य चैत्यालयाद्विना ॥१॥ (जयसेन प्रतिष्ठा) पुण्यवान् गृहस्थों के लिए जिन मन्दिर और जिन प्रतिमा के सिवाय धन की सार्थकता का अन्य कोई साधन नहीं है। नित्य पूजा विधानार्थं स्थापयेन्मन्दिरे नवे । पुराणे वा तत्र भाण्डागारे संस्थापयेद् धनम् ।।२।। (जयसेन प्रतिष्ठा) अपने धन को नित्य पूजा के लिए, नवीन मन्दिर व प्राचीन मन्दिर जीर्णोद्धार हेतु तथा भंडार में देना चाहिये। अतो नित्य महाद्युक्तैर्निर्माप्यं सुकृतार्थिभिः । जिन चैत्यगृहं जीर्णमुद्धार्थं च विशेषतः ।।३।। (आशाधर प्र.) नित्यमह (बिंब प्रतिष्ठा) पूजा करने वालों को पुण्य हेतु नवीन जिन मन्दिर व जीर्ण मन्दिर का उद्धार विशेष रूप से करना चाहिये । धिग्दुष्षमाकालरात्रिं यत्र शास्त्रदृशामपि । चैत्यालोकादृते न स्यात् प्रायो देवविशा मतिः ।।४।। (सा.ध.) इस निंदनीय दुषमा (पंचम) कालरूपी रात्रि में शास्त्रज्ञ लोगों को भी जिन प्रतिमा के दर्शन-पूजन रूप प्रकाश के बिना प्रायः परमात्मा के प्रति श्रद्धा का भाव दृढ़ नहीं हो पाता। १३८] [प्रतिष्ठा-प्रदीप] Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002630
Book TitlePratishtha Pradip Digambar Pratishtha Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1988
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy