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________________ ॐ नमोऽर्हत केवलिने परमोगिने अनंत विशुद्ध परिणाम परिस्फुरच्छुक्लध्यानानि निर्दग्धकर्मबीजाय प्राप्तानंत चतुष्टयाय सौम्याय शांताय मंगलाय वरदाय अष्टादश दोष रहिताय स्वाहा । ॐ णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सवसाहूणं, परम हंसाय परमेष्ठिने हं सः हं हां हूं हैं हौं हः जिनाय नमः वेदिकोपरि जिनं स्थापयामि संवौषट्। (जिनप्रतिमा विराजमान करें) सिद्धा विशुद्धाः स्वगुणैः प्रबुद्धाः निर्धूत कर्म प्रकृति प्रसिद्धाः । प्राप्ताप्त संपत् स्वगुणेष्टि तुष्टाश्चतेऽध्वरायार्घमहं ददामि ॥ ॐ ह्रीं वेदिकोपरिविराजमान श्री जिनप्रतिमाभ्यः अर्घम् ।। बुद्धिं श्रियं धृतिर्कीर्ति कमलामप्यनश्वराम् । प्रयच्छन्तु जिनाः सर्वे भव कोटि निवारकाः ।। इत्याशीर्वादः वेदी पर कलश चढ़ाने का मन्त्र ॐ ह्रीं कलशारोहणाय इवीं क्ष्वी हं सं णमो सिद्धाणं स्वाहा । वेदी पर ध्वजा चढ़ाने का मन्त्र ॐ णमो अरहंताणं स्वस्ति भदं भवतु सर्वलोकस्य शान्तिर्भवतु । शान्ति यज्ञ (हवन) मंदिरवेदी में जिन प्रतिमा विराजमान होने के पश्चात् प्रतिष्ठा के प्रारम्भ में जो शान्ति मन्त्रों का जप किया था उनकी संख्या का दशांश तथा अन्य मन्त्रों की अग्नि में आहुतियाँ की जाती हैं । यह प्रतिष्ठा का अन्तिम कार्यक्रम है। (आचार्य जयसेन प्रतिष्ठा पाठ, पृ. १०९, श्लोक ३५५) के अनुसार बीच में चौकोर और आजू-बाजू गोल (उत्तर में) और त्रिकोण (दक्षिण में) कुंड ईंटों से निर्माण होता है। प्रत्येक कुंड एक हाथ चौड़ा और एक हाथ गहरा हो (इस गहराई में १२ अंगुल भूमि में गड्डा करके और शेष १२ अंगुल ऊपर हिस्से में बाहरी भाग में जिसे नीचे से तीन कटनी में क्रमशः ५, ४,३ अंगुल चौड़ाई और ऊँचाई वाला निर्माण होना है। यह भी नहीं हो तो सभी स्थंडिल निर्माण करा लेवें। इस प्रकार शान्ति यज्ञ में इन्द्र-इन्द्राणी तथा शान्ति जप में सम्मिलित व्यक्ति बैठेंगे, उनकी संख्या देखकर प्रत्येक स्थंडिल पर दोनों ओर मिलाकर कम-सेकम ४ व्यक्ति के अनुसार संख्या में स्थंडिल ५-७-९ या ११ तैयार करा लेवें । स्थंडिल याने आठ-आठ ईंटें रखकर ऊपर १-१ किलो सूखी पीली मिट्टी जमा देवें । उस पर कुंकुम व पिसी हल्दी से स्वस्तिक कर देवें और समिधा रखकर बिना कारीगर के संक्षेप में कार्य कर सकते हैं। हवन में घृत की आहुति लकड़ी के चाटू से जो १ हाथ लंबा होता है देवें । समिधा लाल चंदन, सफेद चंदन, अंगर-तगर की सूखी और निर्जीव होना चाहिये । धूप भी ताजा तैयार करा लेवें। दशांग धूप के पदार्थ सुगंध यंत्री ॥, सुंगुंधवाला १।, [प्रतिष्ठा-प्रदीप] [१३१ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.002630
Book TitlePratishtha Pradip Digambar Pratishtha Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1988
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
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