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ॐ
(सिद्ध आचार्य भक्ति पाठ) १. ॐ ह्रीं पब्रह्मणे नमोनमः स्वस्ति स्वस्ति नंद नंद वर्धस्व वर्धस्व विजयस्व विजयस्व अनुसाधि अनुसाधि पुनीहि पुनीहि पुण्याहं पुण्याहं मांगल्यं मांगल्यं जय जय |
इस मन्त्र से ध्वजा-दंड पर पुष्प क्षेपें । २. ॐ ह्रीं सर्वौषधिना ध्वजदंड शुद्धिं करोमि । ३. ॐ ह्रीं श्रीं नमोऽर्हते जलेन ध्वजदंड शुद्धिं करोमि । ४. ॐ ह्रीं ध्वज दण्डे स्वस्तिकं करोमि। ५. ॐ ह्रीं त्रिवर्ण सूत्रेण ध्वजदंडं परिवेष्टयामि । ॐ हीं दश चिह्नाष्ट गुटिकालंकृत ध्वजायै पुष्पम् ।
__शान्तिपाठ-विसर्जन
मंदिर पर ध्वजा-दण्ड एवं ध्वजारोहण ध्वजदंड स्थापित करने के गर्त में जल से शुद्धि करके सुपारी, हल्दीगांठ, सरसों आदि मंगल द्रव्य क्षेपण करावें । तथा ॐ हूं डूं फट् आदि मन्त्र से मन्त्रित सरसों क्षेपण करें। ॐ णमो अरिहंताणं इस मन्त्र को २७ बार पढ़ें।
रत्नत्रयात्मकतयाऽभिमतेऽत्र दंडे लोकत्रय प्रकृति केवल बोधरूपम् ।
संकल्प्य पूजितमिदं ध्वजमर्च्य लग्ने स्वारोपयामि सन्मंगल वाद्यघोषे ।। उक्त पद्य पढ़कर गर्त में ध्वजदंड स्थापित कराकर ॐ णमो अरिहंताणं स्वस्ति भदं भवतु सर्वलोकस्य शांतिर्भवतु स्वाहा इस मन्त्र द्वारा ध्वजदंड में ध्वजा लगावें। ध्वजा ध्वजदंड में नीचे से बाँध देवें । उस नाड़े की गड्डी नीचे डाल देवें ताकि अन्य परिवार जन उसे हाथ में लेकर ध्वजा चढ़ाने का लाभ ले सकें।
ॐ ह्रीं अर्ह जिनशासन पताके सदोच्छ्रिता तिष्ठ तिष्ठ भव भव वषट् स्वाहा इस मन्त्र से ध्वजा फहरावें। __ध्वजा मंदिर के शिखर के पीछे भाग में रहती है-ध्वजदंड के पीछे भाग में ही फहराती है। ध्वजदंड का मुख पूर्व या ईशान कोण में रहता है।
ध्वजा फहराने पर प्रथम ही पूर्व दिशा में वायुवेग से फहरे तो सर्वमनोसिद्धि, उत्तर में फहरे तो आरोग्य-सम्पत्ति, पश्चिम, वायव्य एवं ऐशान दिशा में फहरे तो वर्षा हो । शेष दिशा व विदिशा में फहरे तो शांति कर्म करना चाहिये।
मन्दिर की वेदी में प्रतिमा विराजमान विधि वेंदी प्रतिष्ठा के समय जो सामग्री (कलश, दीपक, पर्दा आदि) स्थापित थी उसे वहाँ से बाहर ले जाकर वेदी स्वच्छ कर लेवें। [प्रतिष्ठा-प्रदीप]
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