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सुरापगातीर्थेभ्यः उद्भवैः वारिसंचयैः ।
प्रक्षालयामि सद्वेदी तीर्थ कृद्भवने स्थिताम् ।। ॐ ह्रीं शुद्ध जलेन वेदी प्रक्षालनं कुर्मः। ॐ क्षांक्षी हूं क्षौं क्षः जलेन शुद्धिं कृत्वा वेदी प्रोक्षणं कुर्मः। नोट- यहाँ नागकुमार, वातकुमार, मेघकुमार और अग्निकुमार आदि देवों से वेदी शुद्धि कराई जाती है। उक्त देवों की स्थापना-मन्त्र पढ़कर पुष्प क्षेपण द्वारा उन पूजकों में कर दी जाती है और वे ही शुद्धि कार्यों को संपन्न करते हैं । यह प्रारंभ से परम्परा बनी हुई है।
आयात भो वातकुमारदेवाः प्रभोर्विहारावसराप्त सेवाः ।
यज्ञांशमभ्येत सुगंधिशीतमृद्वात्मना शोधयताध्वरोर्वीम् ।। ॐ ह्रीं षण्णवति लक्षा वातकुमार देवा जिन वेदी महीं पूतां कुरु कुरु हूं फट् स्वाहा ।
(डाभ-कूची से वेदी पर हवा करें) आयात भो मेघकुमार देवाः प्रभोर्विहारावसराप्त सेवाः ।
गृह्णीत यज्ञांशमुदीर्णशम्पा गंधौदकैः प्रोक्षत यज्ञभूमिम् ॥ ॐ हीं मेघकुमार देवाः जिन वेदी प्रक्षालयत प्रक्षालयत अंहं सं वं झं यःक्षः फट् स्वाहा ।
(कूची से जल छिड़कें) आयात भो वह्निकुमार देवा आधानविध्यादिविधेय सेवाः ।
भजध्वमिज्यांशमिमां मखोर्वी ज्वालाकलापेन परं पुनीत || ॐ ह्रीं अग्निकुमार देवाः जिन वेदी भूमि शुद्धयर्थं ज्वलय ज्वलय अंहं संबं झंठं यः क्षः फट् स्वाहा |
(कर्पूर जलाकर रकेबी में लेकर वेदी पर रखें) उद्भात भो षष्ठिसहस्रनागाः क्ष्माकामचारस्फुट वीर्य दर्पाः ।
प्रतृप्यतानेन जिनाध्वरोर्वी सेकासुधागर्वमृजामृतेन ॥ ॐ ह्रीं कौं षष्ठिसहस्रनागाः सर्वविघ्नविनाशनं कुरुत कुरुत अहँ नमः स्वाहा ।
षण्मासान्युवमेष्यतां नव दिवश्चाजग्मुषामर्हताम् । पित्रोः सौधमपीद्धमुत्सृजति मुतुः रैदो महेन्द्राज्ञया ।। स्वर्णागाव धुतामरद्रुमफला सारभ्रमं कुर्वतीम् ।
व्यक्तुं तामिह रत्न वृष्टि मुचितं मुंचामिपुष्पोच्चयम् ।। ॐ हीं रजत पुष्प रत्न स्थापनं कुर्मः; - (प्र. सार. ८७)
संस्थाप्यं निश्चलं यन्त्रमधस्तात् प्रतिमां नयेत् । लेखनं स्वर्ण लेखिन्या यन्त्रं तस्य धरार्पितम् ।।
पीठ संस्थापनं तासामतो वक्ष्ये यथागमम् । ॐ नमोऽहं अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल लु, ए ऐ ओ औ अं अः, क ख ग घ ङ, च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण, त थ द ध न प फ ब भ भ, य र ल व श ष स ह क्लीं ह्रीं क्रौं स्वाहा।
[प्रतिष्ठा-प्रदीप]
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