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________________ भाषा- मुक्तावली महान तप, कर्मन नाशन हेतु । करते रहें उत्साहसे, जजू साधु सुख हेतु ।। ॐ ह्रीं महातपत्रसद्धिप्राप्तेभ्योऽय॑म् निर्वपामीति स्वाहा। कासज्वरादिविविधोग्ररुजादिसत्त्वेष्वप्यच्युतानशनकायदमान् श्मशाने । भीमादिगह्वरदरीतटिनीषु दुष्टसंक्लुप्तबाधनसहानहमर्चयामि ॥२४७|| भाषा- कास श्वास ज्वर ग्रसित हो, अनशन तप गिरि साध । दुष्टन कृत उपसर्ग सह, पूजूं साधु अबाध ॥ ॐ हीं घोरतपऋद्धिप्राप्तेभ्योऽय॑म् निर्वपामीति स्वाहा । पूर्वोदितासु विधियोगपरंपरासु स्फारीकृतोत्तरगुणेषु विकाशवत्सु । येषां पराक्रमहतिर्न भवेत्तमर्चे पादस्थलीमिह सुघोरपराक्रमाणां ॥२४८|| भाषा- घोर-घोर तप करत भी , होत न बलसे हीन । उत्तर गुण विकसित करें, जजूं साधु निज लीन ।। ॐ हीं घोरपराक्रमऋद्धिप्राप्तेभ्योऽय॑म् निर्वपामीति स्वाहा । दुःस्वप्नदुर्गतिसुदुर्मतिदौर्मनस्त्वमुख्याः क्रिया व्रतविघातकृते प्रशस्ताः । तासां तपोविलसनेन समूलकाषं घातोऽस्ति ते सुरसमर्चित शीलपूज्याः ।।२४९|| भाषा- दुष्ट स्वप्न दुर्मति सकल, रहित शील गुण धार । - परमब्रह्म अनुभव करें, जजू साधु अविकार ।। ॐ ह्रीं घोरब्रह्मचर्यगुणऋद्धिप्राप्तेभ्योऽय॑म् निर्वपामीति स्वाहा | अन्तर्मुहूर्तसमये सकल श्रुतार्थसंचिंतनेऽपि पुनरुद्भटसूत्रपाठाः । स्वच्छा मनोऽभिलषिता रुचिरस्ति येषां कुर्यान्मनोबलिन उत्तममांतरं मे ॥२५०।। भाषा- सकल शास्त्र चिन्तन करें, एक मुहूर्त मंझार । घटत न रुचि मन वीरता, जजू यती भवतार ।। ॐ हीं मनोबलसद्धिप्राप्तेभ्योऽय॑म् निर्वपामीति स्वाहा । जिह्वाश्रुतावरण वीर्यशमक्षयाप्तावंतर्मुहूर्तसमयेषु कृतश्रुतार्थाः । प्रश्नोत्तरोत्तरचयैरपि शुद्धकण्ठदेशाः सुवाक्यबलिनो मम पांतु यज्ञं ।।२५१।। भाषा- सकल शास्त्र पढ़ जात हैं, एक मुहूर्त मंझार । प्रश्नोत्तर कर कंठ शुचि, धरत यजूं हितकार ।। ॐ हीं वचनबलसद्धिप्राप्तेभ्योऽय॑म् निर्वपामीति स्वाहा । मेर्वादिपर्वतगणोद्धरणेषु शक्ता रक्षःपिशाच शतकोटि बलाधिवीर्याः । मासर्तुवत्सरयुगाशनमोचनेऽपि हानिन कायबलिनः परिपूजयामि ॥२५२।। [प्रतिष्ठा-प्रदीप] [९७ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002630
Book TitlePratishtha Pradip Digambar Pratishtha Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1988
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
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