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________________ कंदर्पनाम स्मरसद्भटस्य मुधैव नामेति तदर्दनोद्घः । प्रशस्तकंदर्प इयाय शक्तिं यतोऽर्चयेऽहं तदयोगबुद्धयै ।।१०४|| भाषा- मदनदर्पके नाशनहार, जिनकंदर्प आत्मबलधार । दर्प अयोग बुद्धिके काज, पूजू अर्घ लिये जिनराज || ॐ ही कंदर्प जिनाय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा । अनेकनामानि गुणैरनंतैर्जिनस्य बोध्यानि विचारवद्भिः । जयं तथा न्यासमथैकविंशमनागतं संप्रति पूजयामि ॥१०५॥ भाषा- गुण अनन्त ते नाम अनन्त, श्रीजयनाथ धरम भगवंत । पूनूं अष्टद्रव्य कर लाय, विघ्न सकल जासे टल जाय ॥ ॐ ह्रीं जयनाथ जिनाय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा। अभ्यर्हितात्मप्रगुणस्वभावं मलापहं श्रीविमलेशमीशं । पात्रे निघायार्घ्यमफल्गुशीलोद्धरप्रशक्त्यै जिनमर्चयामि ॥१०६॥ भाषा- पूज्य आत्म गुणधर मलहार, विमलनाथ जय परम उदार । शील परम पावनके काज, पूजू अर्घ लेय जिनराज || ॐ ह्रीं विमल जिनाय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा । अनेकभाषा जगति प्रसिद्धा परंतु दिव्यो ध्वनिरर्हतो वै । ___ एवं निरूप्यात्मनि तत्त्वबुद्धिमभ्यर्चयामो जिनदिव्यवादं ॥१०७।। भाषा- दिव्यवाद अर्हन्त अपार, दिव्यध्वनि प्रगटावनहार | आत्मतत्त्वज्ञाता सिरताज, पूजू अर्घ लेय जिनराज || ॐ हीं दिट्यवाद जिनाय अर्घ्यम् निर्दपामीति स्वाहा। शक्तेरपारश्चित एव गीतस्तथापि तद्व्यक्तिमियर्ति लब्ध्या । ___ अनंतवीर्यं त्वमगाः सुयोगात्त्वामर्चये त्वत्पदघृष्टमूर्ना ॥१०८।। भाषा- शक्ति अपार आत्म धरतार, प्रगट करें जिन योग सम्हार । __ वीर्य अनन्तनाथको ध्याय, नत मस्तक पूजूं हरषाय ॥ ॐ ह्रीं अनन्तवीर्य जिनाय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा । . काले भाविनि ये सुतीर्थधरणात् पूर्वं प्ररूप्यागमे, विख्याता निजकर्मसंततिमपाकृत्य स्फुरच्छक्तयः । तानत्र प्रतिकृत्यपावृतमखे संपूजिता भक्तितः, प्राप्ताशेषगुणस्तदीप्सितपदावाप्त्यै तु संतु श्रिये ॥१०९॥ भाषा- दोहा तीर्थराज चौबीस जिन, भावी भव हरतार | बिम्बप्रतिष्ठा कार्य में, पूजूं विघ्न निवार ।। ॐ हीं बिप्रतिष्ठोद्यापने मुख्यपूजार्हचतुर्थवलयोन्मुदितानागतचतुर्विंशतिमहापद्माद्यनंतदीयतिभ्यो जिनेभ्यः पूर्णाऽय॑म् निर्वपामीति स्वाहा । [प्रतिष्ठा-प्रदीप] [७३ ___ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002630
Book TitlePratishtha Pradip Digambar Pratishtha Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1988
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
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