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________________ स्वयं शिवः शाश्वतसौख्यदायि स्वायंप्रभुः स्वात्मगुणप्रपन्नः । तस्मात्तदर्शप्रतिपन्नकामस्त्वामर्चये प्रांजलिना नतोऽस्मि ॥४८|| भाषा- शिव जिन शिव शाश्वत सौख्यकरी, निज आत्म विभूति स्वहस्त करी । हम शिव वाञ्छक कर जोड़ नमें, शिव लक्ष्मी दो नहिं काहू नमें । ॐ ह्रीं शिव जिनाय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा। सत्कुंदमल्लीजलजादिपुष्पैरभ्यर्च्यमानः श्रियमादधाति । नान्माऽप्यसौ तादृश एव यस्मात् पुष्पांजलिं त्वां प्रतिपूजयामि ॥४९॥ भाषा- पुष्पांजलि पुष्प नितें जजिये, सब काम व्यथा क्षणमें हरिये । निज शील स्वभाव हि रम रहिये, निज आत्म जनित सुखको लहिये ॥ ॐ हीं पुष्पांजलि जिनाय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा । उत्साहयन् ज्ञानधनेश्वराणां शाम्याम्बुधिं संयमचंद्रकीर्तेः । उत्साहनाथो यजनोत्सवेऽस्मिन् संपूजितो मे स्वगुणं ददातु ॥५०॥ भाषा- उत्साह जिनं उत्साह करें, निज संयम चन्द्र प्रकाश करें । समभाव समुद्र बढ़ावत हैं, हम पूजत तब गुण पावत हैं | ॐ हीं उत्साह जिनाय अय॑म् निर्वपामीति स्वाहा । _ नमोऽस्तु नित्यं परमेश्वराय कृपा यदीयाक्षणसंनिधानात् । __ करोति चिंतामणिरीप्सितार्थमिवांचये तं परमेश्वराख्यं ॥५२॥ भाषा- चिंतामणि सम चिता हरिये, निज सम करिये भव तम हरिये । परमेश्वर जिन ऐश्वर्य धरें, जो पूजे ताके विघ्न हरें ॥ ॐ ह्रीं परमेश्वर जिनाय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा। यज्जानरत्नाकरमध्यवर्ती जगत्त्रयं विंदसमं विभाति । तं ज्ञानसाम्राज्यपतिं जिनेंद्र ज्ञानेश्वरं संप्रति पूजयामि ।।५३।। भाषा- ज्ञानेश्वर ज्ञान समुद्र पाय, त्रैलोक बिंदु सम जहं दिखाय । निज आतमज्ञान प्रकाशकार, वंदू पूजू मैं बारबार ॥ ॐ ह्री ज्ञानेश्वर जिनाय अर्घ्यम निर्वपामीति स्वाहा। तपोवृहद्भानुसमूह तापकृतात्मनैर्मल्यमनिर्मलानाम् । अस्मादृशां तद्गुणमाददानं संपूजयामो विमलेश्वरं तं ।।५३|| भाषा- कर्मों ने आत्म मलीन किया, तप अग्निजला निज शुद्ध किया। विमलेश्वर जिन मो विमल करो, मल ताप सकल ही शांत करो ।। ॐ ही विमलेश्वर जिनाय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।। यशः प्रसारे सति यस्य विश्वं सुधामयं चंद्रकलावदातं । अनेकरूपं विकृतैकरूपं जातं समर्चे हि यशोधरेशं ॥५४|| भाषा- यश जिनका विश्व प्रकाश किया, शशि कर इव निर्मल व्याप्त किया। भट मोहं अरी ने शांत किया, यशधारी सार्थक नाम किया ।। ॐ ह्रीं यशोधरा जिनाय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा । [प्रतिष्ठा-प्रदीप] ६४] Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002630
Book TitlePratishtha Pradip Digambar Pratishtha Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1988
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
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