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________________ . पीयूषपिंडनिवहैघृत शर्करान्नयोगोद्रवैर्नयनचित्त विलासदक्षैः । चामीकरादिशुचिभाजनसंस्थितैर्वा संपूजयाम्यशन बाधनबाधनाय ||१३|| भाषा- पकवान मनोहर लाए, जासे क्षुद्र रोग शमाए । गुरु पंच परम सुखदाई, हम पूजें ध्यान लगाई ।। ॐ हीं अस्मिन् प्रतिष्ठोत्सवे सर्वयज्ञेश्वरजिनमुनिभ्यो क्षुधारोगनिवारणाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा । अमितमोहतमोविनिवृत्तये घटितरत्नमणिप्रभवात्मभिः । अयमहं खलुदीपकनामकै र्जिनपदाग्रभुवं परिदीपये ॥१४॥ भाषा- मणि रत्नमई शुभ दीपा, तुम मोहहरण उद्दीपा । गुरु पंच परम सुखदाई, हम पूजें ध्यान लगाई ।। ॐ हीं अस्मिन् प्रतिष्ठोत्सवे सर्वयझेश्यरजिनमुनिभ्यो मोहांधकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा । धूपोद्घाणैर्यजनविधिषु प्रीणिताशेषदिक्कैरुद्यद्वन्हावगुरुमलयापीडकान् संदहद्भिः । अर्चे कर्मक्षपणकरणे कारणैराप्तवाक्यैर्यज्ञाधीशानिव बहुविधैधूपदानप्रशस्तैः ।।१५।। भाषा- शुभ गंधित धूप चढ़ाऊं कर्मो के वंश जलाऊं । गुरु पंच परम सुखदाई, हम पूजें ध्यान लगाई ।। ॐ हीं अस्मिन् प्रतिष्ठोत्सवे सर्वयज्ञेश्वरजिनमुनिभ्यो अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्दपामीति स्वाहा । निः श्रेयसपदलब्ध्यै कृतावतारैः प्रमाणपटुभिरिव । स्याद्वाद भंगनिकरैर्यजामि सर्वज्ञमनिशममरफलैः ।।१६।। भाषा- सुन्दर दिवि भव फल लाए, शिवहेतु सुचरण चढ़ाए । गुरु पंच परम सुखदाई, हम पूजें ध्यान लगाई ।। ॐ हीं अस्मिन् प्रतिष्ठोत्सवे सर्वयझेश्वरजिनमुनिभ्यो मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्दपामीति स्वाहा । पात्रे सौवर्णे कृतमानंदजयषक् पूजाहँतं विस्फुरितानां हृदयेऽत्र । तोयाद्यष्टद्रव्य समेतै तमधुशास्तृणामग्रे विनयेन प्रणिदध्मः ॥१७|| भाषा- सुवरण के पात्र धराए, शुचि आठों द्रव्य मिलाए । गुरु पंच परम सुखदाई, हम पूजें ध्यान लगाई ।। ॐ हीं अस्मिन् प्रतिष्ठोत्सवे सर्वयझेश्वरजिनमुनिभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा । (अब २५० कोठों में स्थापित पूज्यों को अलग-अलग अर्घ चढ़ाना थाली में ही) [प्रतिष्ठा-प्रदीप] Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002630
Book TitlePratishtha Pradip Digambar Pratishtha Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1988
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
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