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जैनागम दिग्दर्शन
उन्हें वर्णित नहीं किया गया है। श्रु त-वाङ्मय में वर्णनात्मक शैली की रचनाओं में यह महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
२. रायपसेरगीन (राज प्रश्नीय) देव-अधिकार, देव-विमान-अधिकार, देव-ऋद्धि-अधिकार, 'परदेसी राजा अधिकार तथा दृढ़प्रतिज्ञकुमार अधिकार नामक पांच अधिकारों में यह पागम विभक्त है । प्रथम तीन अधिकारों में सूर्याभ देव का, चतुर्थ अधिकार में परदेशी राजा का तथा पंचम में दृढ़प्रतिज्ञ कुमार का वर्णन है।
गणधर गौतम द्वारा महा समृद्धि, विपुल वैभव, अनुपम दीप्ति, कान्ति और शोभा सम्पन्न सूर्याभदेव का पूर्व-भव पूछे जाने पर भगवान् महावीर उन्हें उसका पूर्व-भव बतलाते हुए कहते हैं कि, यह 'पूर्व-भव में राजा परदेशी था। यहीं से राजा परदेशी का वृत्तान्त प्रारम्भ हो जाता है, जो इस सूत्र का सब से अधिक महत्वपूर्ण भाग है । राजा परदेशी अनात्मवादी या जड़वादी था। उसका भगवान् पार्श्व के प्रमुख शिष्य केशीकुमार के सम्पर्क में आने का प्रसंग बनता है। अनात्मवाद और आत्मवाद के सन्दर्भ में विस्तृत वार्तालाप होता है। राजा परदेशी अनात्मवादी, अपुनर्जन्मवादी तथा जड़वादी दृष्टिकोण को लेकर अनेक प्रश्न उपस्थित करता है, तर्क प्रस्तुत करता है। श्रमण केशीकुमार युक्ति और न्यायपूर्वक विस्तार से उसका समाधान करते हैं। राजा परदेशी सत्य को स्वीकार कर लेता है
और श्रमणोपासक बन जाता है। धर्माराधना पूर्वक जीवन-यापन करने लगता है। रानी द्वारा विष-प्रयोग, राजा द्वारा किसी भी तरह से विद्विष्ट और विक्षुब्ध भाव के बिना आमरण अनशन पूर्वक प्राण त्याग के साथ यह अधिकार समाप्त हो जाता है।
आत्मवाद तथा जड़वाद की प्राचीन परम्पराओं और विमर्शपद्धतियों के अध्ययन की दृष्टि से इस सूत्र का यह भाग अत्यन्त महत्वपूर्ण है । गणधर गौतम के पूछे जाने पर भगवान् महावीर ने आगे बताया कि सूर्याभदेव अपने अग्रिम जन्म में दृढप्रतिज्ञकुमार
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