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________________ पैतालीस आगम ८३ होगा। इस प्रकार अन्तिम अधिकार में भविष्यमाण जीवन-वृत्त का उल्लेख है। - सूर्याभदेव के विशाल, सुन्दर, समृद्ध और सर्वविध सुविधापूर्ण सुसज्ज विमान की रचना आदि के प्रसंग में जो वर्णन पाया है, वहां तोरण, शालभंजिका, स्तम्भ, वेदिका सुप्रतिष्ठक, फलक, करण्डक, सूचिका, प्रेक्षागह, वाद्य, अभिनय आदि शब्द भी प्राप्त होते हैं। वास्तव में प्राचीन स्थापत्य, संगीत आदि के परिशीलन की दृष्टि से यह प्रसंग महत्वपूर्ण है । भगवान् महावीर के समक्ष देवकुमारों तथा देवकुमारियों द्वारा बतीस प्रकार के नाटक प्रदर्शित किये जाने का प्रसंग प्राचीन नृत्त, नृत्य और नाट्य आदि के सन्दर्भ में एक विश्लेषणीय और विवेचनीय विषय है। नन्दी-सूत्र में रायपसेणिय शब्द पाया है। प्राचार्य मलयगिरि ने इस नाम को रायपसेणी माना है। डा० जगदीशचन्द्र जैन ने इसके लिये रायपसेणइय का प्रयोग किया है। इस सूत्र के प्रधान पात्र या कथा-नायक के सम्बन्ध में एकमत्य नहीं है। उस मतदूध का आधार यह नाम भी बना है । परम्परा से राजा परदेशी इस सूत्र के कथानक का मुख्य पात्र है। पर, डा० विण्टरनित्ज के मतानुसार मूलतः इस आगम में कोशल के इतिहास-प्रसिद्ध राजा प्रसेनजित् की कथा थी। बाद में उसे राजा परदेशी से जोड़ने का प्रयत्न हुआ। रायपसेणीय तथा रायपसेणइय शब्दों का सम्बन्ध तो राजा प्रसेनजित् से जुड़ता है, पर, वर्तमान में प्राप्त कथानक का सम्बन्ध ऐतिहासिक दृष्टि से राजा प्रसेनजित् से जोड़ना सम्भव प्रतीत नहीं होता। यह सारा कथा-क्रम कैसे परिवर्तित हुआ, क्या-क्या स्थितियाँ उत्पन्न हुई, कुछ कहा जाना शक्य नहीं है। इसलिए जब तक परिपुष्ट १. नृत्तं ताललयाश्रयम् । ताल से मात्रा और लय से द्र त, मध्य तथा मन्द । जैसे लोक-नृत्य, भीलों का गरबा । २. भावाश्रयं नृत्यम् । नृत्य में गात्र-विक्षेप से भाव-व्यंजना । जैसे, भरतनाट्यम्, कत्थक-नृत्य, उदयशंकर के नृत्य । विशेष-नृत्त और नृत्य के दो-दो भेद हैं-लास्य-मधुर, ताण्डव-उद्धत । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002628
Book TitleJainagama Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni, Mahendramuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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