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________________ जैनागम दिग्दर्शन यह भी प्रावश्यकता के . अनुरूप हुआ और इससे अभीप्सित ध्येय सधा भी। फलतः वेदाध्ययन में सुगमता हुई। उपवेदों की परिकल्पना . वैदिक साहित्य में चारों वेदों के समकक्ष चार उपवेदों की भी कल्पना हुई, जो आयुर्वेद गान्धर्व वेद (संगीत-शास्त्र), धनुर्वेद और अर्थशास्त्र (राजनीति-विज्ञान) के रूप में प्रसिद्ध है। ..." ___वेदों के अंगों तथा उपांगों की प्रतिष्ठापना की तो सार्थकता सिद्ध हुई, पर, उपवेद वेदों के किस रूप में पूरक हुये; दार्शनिक दृष्टि से उतना स्पष्ट नहीं है, जितना होना चाहिये। उदाहरणार्थ, सामवेद को गान्धर्व वेद से जोड़ा जा सकता है, उसी तरह अन्य वेदों की भी वेदों के साथ संगति साधने के लिए विवक्षा हो सकती है। दूरान्विततया संगति जोड़ना या परस्पर तालमेल बिठाना कहीं भी दुःसम्भव नहीं होता । पर, वह केवल तर्क-कौशल और वाद-नैपुण्य की सीमा में पाता है। उसमें वस्तुतः सत्योपपादन का भाव नहीं होता। पर, 'उप' उपसर्ग के साथ निष्पन्न शब्दों में जो 'पूरकता' का विशेष गुण होना चाहिये, वह कहां तक फलित होता है, यही देखना है । जैसे, गान्धर्व उपवेद सामवेद से निःसत या विकसित शास्त्र हो सकता है, पर, वह सामवेद का पूरक हो, जिसके बिना सामवेद में कुछ अपूर्णता प्रतीत होती हो, ऐसा कैसे माना जा सकता है ? सामवेद और गान्धर्व उपवेद की तो किसी-न-किसी तरह संगति बैठ भी सकती है, पर, औरों के साथ ऐसा नहीं हो सकता। फिर भी ऐसा किया गया, यह क्यों ? इस प्रश्न का इत्थंभूत समाधान सुलभ नहीं दीखता । हो सकता है, धनुर्वेद आदि लोकजनीन शास्त्रों को मूल वैदिक वाङ्मय का अंश या भाग सिद्ध करने की उत्कंठा का यह परिणाम हुआ हो। जैन श्रु तोपांग अंग-प्रविष्ट या अंग-श्रु त सर्वाधिक प्रामाणिक है; क्योंकि वह भगवत्प्ररूपित और गणधर-सर्जित है । तद्व्यतिरिक्त साहित्य (स्थविरकृत) का प्रामाण्य उसके अंगानुगत होने पर है। वर्तमान में जिसे उपांग-साहित्य कहा जा सकता है, वह सब अंग-बाह्य में सन्निविष्ट है । उसका प्रामाण्य अंगानुगतता पर है, स्वतन्त्र नहीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002628
Book TitleJainagama Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni, Mahendramuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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