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________________ ७६ जैनागम दिग्दर्शन दृष्टिवाद के मेद : उहापोह - समवायांग आदि में दृष्टिवाद के पांच भेदों का उल्लेख है :१. परिकर्म, २. सूत्र, ३. पूर्वगत, ४. अनुयोग, ५. चूलिका। स्थानांग सूत्र में दिये गये हष्टिवाद के पर्यायवाची शब्दों में आठवां 'पूर्वगत' है । यहां दृष्टिवाद के भेदों में तीसरा 'पूर्वगत' है। अर्थात् 'पूर्वगत' का प्रयोग दृष्टिवाद के पर्याय के रूप में भी हुआ है और उसके एक भेद के रूप में भी। दोनों स्थानों पर उसका प्रयोग. साधारणतया ऐसा प्रतीत होता है, भिन्नार्थकता लिये हुये होना चाहिये; क्योंकि दृष्टिवाद समष्ट्यात्मक संज्ञा है, इसलिए उसके पर्याय के रूप में प्रयुक्त 'पूर्वगत' का यही अर्थ होता है. जो दृष्टिवाद का है। दृष्टिवाद के एक भेद के रूप में आया हुअा 'पूर्वगत' शब्द सामान्यतः दृष्टिवाद के एक भाग या अंश का द्योतक होता है, जिसका आशय चतुर्दश पूर्वात्मक ज्ञान है। शाब्दिक अर्थ की दृष्टि से दृष्टिवाद और पूर्वगत-चतुर्दश पूर्व-ज्ञान एक नहीं कहा जा सकता। पर, सूक्ष्म दृष्टि से विचार करना होगा। वस्तुतः चतुर्दश पूर्वो के ज्ञान की व्यापकता इतनी अधिक है कि उसमें सब प्रकार का ज्ञान समाविष्ट हो जाता है। कुछ भी अवशेष नहीं रहता। यही कारण है कि चतुर्दश पूर्वघर की संज्ञा श्रत-केवली है। पूर्वगत को दृष्टिवाद का जो एक भेद कहा गया है, वहाँ सम्भवतः एक भिन्न दृष्टिकोण रहा है। पूर्वगत के अतिरिक्त अन्य भेदों द्वारा विभिन्न विधाओं को संकेतित करने का अभिप्राय उनके विशेष परिशीलन से प्रतीत होता है। कुछ प्रमुख विषय - ज्ञान के कतिपय विशिष्ट पक्ष. जिनकी जीवन में अपेक्षाकृत विशेष उपयोगिता होती है, विशेष रूप से परिशीलनीय होते हैं; अतः सामान्य-विशेष के दृष्टिकोण से यह निरूपण किया गया प्रतीत होता है । अर्थात् सामान्यतः तो पूर्वगत में समग्र ज्ञान-राशि समायी हुई है ही, पर, विशेष रूप से तद्व्यतिरिक्त भेदों की वहां अध्येतव्यता विवक्षित है। मेद-प्रभेदों के रूप में विस्तार दृष्टिवाद के जो पांच भेद बतलाये गये हैं, उनके भेद-प्रभंदों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002628
Book TitleJainagama Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni, Mahendramuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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