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पैतालीस आगम
द्वितीय श्रुत-स्कन्ध में सुबाहुकुमार से सम्बद्ध प्रथम अध्ययन, विस्तृत है । अग्रिम नौ अध्ययन अत्यन्त संक्षिप्त हैं। उनमें पात्रों के चरित की सूचनाएं मात्र हैं । प्रायः सुबाहुकुमार की तरह परिज्ञात करने का संकेत कर कथानक का संक्षेप कर दिया गया है। इन्हें केवल नाम-मात्र के अध्ययन कहा जा सकता है।
__स्थानांग सूत्र में वर्णित कम्मविवागदसाओ के तथा विपाक सत्र प्रथम श्रत-स्कन्ध के निम्नांकित अध्ययन प्रायः नाम-सादृश्य लिये हुए हैं : स्थानांग
विपाक-सूत्र, प्रथम श्र त-स्कन्ध. १. मृगापुत्र अध्ययन
१. मृगापुत्र अध्ययन ४. शकट अध्ययन
४. शकट अध्ययन ६. नन्दिषेण अध्ययन
६. नन्दि (नन्दिषेण) अध्ययन ७. उदुम्बर अध्ययन
७. उम्बर अध्ययन तुलनात्मक विवेचन से ऐसा अनुमान असम्भाव्य कोटि में नहीं जाता कि विपाक (सूत्र) का स्वरूप कुछ यथावत् रहा हो, कुछ परिवर्तित या शब्दान्तरित हुआ हो। अध्ययनों की क्रम-स्थापना में भी कुछ भिन्नता आई हो।
१२. दिठिवाय (दृष्टिवाद) स्थानांग में दृष्टिवाद के पर्याय
पूर्वो के विवेचन-प्रसंग में दृष्टिवाद के विषय में संकेत किया गया है। इसे विछिन्न माना जाता है। स्थानांग सूत्र में इसके दश पर्यायवाची शब्दों का उल्लेख हुमा है : १. दृष्टिवाद, २. हेतुवाद, ३. भूतवाद, ४. तत्त्ववाद, ५. सम्यकवाद, ६. धर्मवाद. ७. भाषाविजय, ८. पूर्वगत, ६. अनुयोगगत, १०. सर्वप्राण भूतजीव सत्व सुखावह । १. दिट्ठिवायस्स रणं दस नामधिज्जा प० तं० दिट्ठिवाएइ वा हेतुवाएइ वा
भूयवाएइ वा तच्चावाएइ वा सम्मावाएइ वा धम्मावाएइ वा भासाविजयेइ वा पूव्वगएइ वा अरणुप्रोगएइ वा सम्वपाणभूयजीवसत्तसुहावहेइ वा ।
-स्थानांग सत्र; स्थान १०, ७७.
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