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________________ ७२ जैनागम दिग्दर्शन (असत्य), अदत्त (चौर्य), ब्रह्मचर्य तथा, परिग्रह का स्वरूप बड़े विस्तार के साथ बतलाया गया है। द्वितीय खण्ड में पांच संवरद्वारअहिंसा, सत्य, दत्त (अचौर्य), ब्रह्मचर्य तथा निष्परिग्रह की विशद व्याख्या की गयी है। प्राचार्य अभयदेवसूरि की टीका के अतिरिक्त आचार्य ज्ञानविमल की भी इस पर टीका है । वर्तमान-स्वरूप : समीक्षा स्थानांग सूत्र में प्रश्न व्याकरण के उपमा, संख्या, ऋषिभाषित, प्राचार्य-भाषित, महावीर-भाषित, क्षोमक' प्रश्न, कोमल प्रश्न, प्रादर्श-प्रश्न,२ अगष्ठ प्रश्न तथा बाहु प्रश्न; इन दश अध्ययनों की चर्चा है। नन्दीसूत्र में एक सौ पाठ प्रश्न, एक सौ पाठ अप्रश्न, एक सौ पाठ प्रश्नाप्रश्न, अंगुष्ठ के प्रश्न, बाहु के प्रश्न, आदर्श (दर्पण) प्रश्न, अन्य अनेक दिव्य विद्याओं (मन्त्र-प्रयोग), नागकुमार तथा स्वर्णकुमार देवों को सिद्ध कर दिव्य संवाद प्राप्त करना आदि प्रश्नव्याकरण के विषय वणित हुये हैं।४ १. विद्या-विशेष, जिससे वस्त्र में देवता का आह्वान किया जाता है । -~पाइप्रसहमहण्णवो, पृ० २८१ २. विद्या-विशेष, जिससे दर्पण में देवता का आगमन होता है । –पाइप्रसहमहण्णवो, पृ० ५१ ३. पण्हावागरणदसारणं दस अज्झयरणा प०, तं० उवमा, संखा, इसिभा सियाइं, पायरियभासियाई, महावीरभासियाई, खोमगपसिरणाइं, कोमलपसिणाई, अदागपसिणाई, अंगुट्ठपसिणाई, बाहुपसिणाई। -स्थानांग; स्थान १०, ६८ ४. से कि तं पण्हावागरणाइं ? पण्हावागरणेसु रणं अठुत्तरं पसिणसयं, अठुत्तरं अपसिणसयं, अठुत्तरं पसिणापसिण सयं । तं जहाअंगुठ्ठपसिणाइं, बाहुपसिणाई, अद्दागपसिणाई, ण्णे विचित्ता दिव्वा विज्जाइं, सया नाग-सुवण्णेहिं सिहि दिवा संवाया प्राधविज्जंति, पण्हावागरणाणं परित्ता वायणा संखिज्जा प्रणुप्रोगदारा, संखिज्जावेढ़ा, संखिज्जा सिलोगा.......। -नन्दी सूत्र; पृ० १८५-८६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002628
Book TitleJainagama Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni, Mahendramuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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