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पंतालीस आगम
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प्रसंग हैं, जो महासोहनादसुत्त, कस्सपसोहनादसुत्त आदि पालि-ग्रन्थों में वर्णित बुद्ध की तपस्या-जनित दैहिक क्षीणता का स्मरण कराते हैं। वर्तमान रूप : अपरिपूर्ण, अयथावत्
ऐसा अनुमान है कि इस ग्रन्थ का वर्तमान में जो स्वरूप प्राप्त है. वह परिपूर्ण और यथावत् नहीं है। स्थानांग में इसके भी दश अध्ययनों को चर्चा पाई है। प्रतीत होता है, प्रारम्भ में उपासकदशा तथा अन्तकृद्दशा की तरह इसके भी दश अध्ययन रहे हों, जो अब केवल तीन वर्गों के रूप में अवशिष्ट हैं ।
१०. पण्हवागरणाई (प्रश्नव्याकरण) नाम के प्रतिरूप
श्र तांग के नाम में प्रश्न और व्याकरण : इन दो शब्दों का योग है, जिसका अर्थ है प्रश्नों का विश्लेषण, उत्तर या समाधान । पर, आज इसका जो स्वरूप प्राप्त है, उससे स्पष्ट है कि इसमें प्रश्नोत्तरों का सर्वथा अभाव है। वर्तमान रूप
प्रश्नव्याकरण का जो संस्करण प्राप्त है, वह दो खण्डों में विभक्त है। पहले खण्ड में पांच प्रास्रव द्वार-हिंसा, मृषावाद
१. अणुत्तरोववाइयदसारणं दस अज्झयरणा पण्णत्ता तं जहा
इसिदासे य धण्णे य, सूनक्खत्त य कित्तिये । संठारने सालिभ ए, पारणंदे तेयली इय ।। दसन्नभद्दे अहमुत्ते एमे ते दस प्राहिया ।
-स्थानाँग सूत्र; स्थान १०, ६६ २. प्रश्नाश्च पृच्छा, व्याकरणानि च निर्वचनानि समाहारत्वात् प्रश्न
व्याकरणम् । तत्प्रतिपादको ग्रन्थोपि प्रश्नव्याकरणम् । प्रश्नाअंगुष्टादिप्रश्न विद्यास्ता व्याक्रियन्ते अभिधीयन्ते यस्मिन्निति प्रश्नव्याकरणम् । प्रवचनपुरुषस्य दशमेऽङ्गे । अयं च व्युत्पत्त्यर्थोस्य पूर्वकालेऽभूत् । इदानीं त्वास्रवपंचकसंवरपंचकव्याकृतिरेवेहोपलभ्यते ...।
-अभिधान राजेन्द्र ; पंचम भाग, पृ० ३६१
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