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जैनागम दिग्दर्शन
८. किंकर्मपल्लित अध्ययन, ६. फालित अध्ययन,
१०. मंडितपुत्र
अध्ययन |
बहुत सम्भावित यह प्रतीत होता है कि प्रारम्भ में इस श्रुतांग ग्रन्थ में उपासकदशाँग की तरह दश ही अध्ययन रहे होंगे । पीछे पल्लवित होकर वर्तमान रूप में पहुंचा हो । जिस प्रकार उपासकदशा में गृहस्थ साधकों या श्रावकों के कथानक वर्णित हैं, उसी तरह इस श्रुतांग में अर्हतों के कथानक वर्णित किये गये हैं और वे प्रायः एक जैसी शैली में लिखे गये हैं ।
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अन्तकृद्दशा के तृतीय वर्ग के अष्टम अध्ययन में देवकी - पुत्र गजसुकुमाल का कथानक है; जो विशेष रूप से उल्लेखनीय है । यह कथानक उत्तरवर्ती जैन साहित्य में पल्लवित और विकसित होकर अवतरित हुआ है । छठे वर्ग के तृतीय अध्ययन में अजुन मालाकार का कथानक है, जो जैन साहित्य में बहुत प्रसिद्ध है । स्वतन्त्र रूप से इस कथानक पर अनेक रचनाएं हुई हैं । अष्टम वर्ग में अनेक प्रकार की तपो विधियों, उपवासों तथा व्रतों का वर्णन है ।
६. अनुत्तरोववाइयदसाधो (अनुत्तरोपपातिकदशा)
नाम : व्याख्या
ताँग में कतिपय ऐसे विशिष्ट महापुरुषों के प्राख्यान हैं, जिन्होंने तपः -पूर्ण साधना के द्वारा समाधि-मरण प्राप्त कर अनुत्तर विमानों में जन्म लिया । वहां से पुनः केवल एक ही बार मनुष्ययोनि में आना होता है, अर्थात् उसी मानव भव में मोक्ष हो जाता है । अनुत्तर और उपपात ( उद्भव, जन्म) के योग से यह शब्द बना है, जो न्वर्थक है ।
तीन वर्गों में यह श्रुतांग विभक्त है । प्रथम वर्ग में दश, दूसरे वर्ग में तेरह तथा तीसरे वर्ग में दश अध्ययन हैं । इनमें चरित्रों का वर्णन परिपूर्ण नहीं है । केवल सूचन मात्र कर अन्यत्र देखने का इंगित कर दिया गया है । प्रथम वर्ग में धारिणी- पुत्र जालि तथा तृतीय वर्ग में भद्रा पुत्र धन्य का चरित्र कुछ विस्तार के साथ प्रतिपादित किया गया है । धन्य अनगार की तपस्या, तज्जनित देह-क्षीणता आदि ऐसे
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