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पैंतालीस श्रागम
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इसकी शान रखनी है । उन्हें तो यथार्थं ही कहना था । वे बोले, - गौतम ! प्रायश्चित्त के भागी तुम ही हो। तुमने असत्य का आग्रह लिया था । आनन्द ने जो कहा, वह सम्भव है, सत्य है । तुम इन्हीं पैरों वापिस जाओ और श्रमणोपासक आनन्द से क्षमा-याचना करो ।
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गौतम भी तो वीतराग-साधना के पथिक थे । अपने अहं का विसर्जन कर, ग्रानन्द के पास लौटे। अपनी भूल को स्वीकार किया, आनन्द से क्षमा-याचना की ।
८. श्रन्तगडदसानो ( श्रन्तकृद्दशा)
नाम : व्याख्या
जिन महापुरुषों ने घोर तपस्या तथा आत्म-साधना द्वारा निर्वाण प्राप्त कर जन्म-मरण - आवागमन का अन्त किया, वे श्रन्तकृत् कहलाये | उन अर्हतों का वर्णन होने से इस श्रुतांग का नाम अन्तकृद्दशाँग है । इस श्रुतांग में आठ वर्ग हैं। प्रथम में दश, द्वितीय
ठ, तृतीय में तेरह, चतुर्थ में दश, पंचम में दश, षष्ठ में सोलह, सप्तम में तेरह, तथा अष्टम वर्ग में दश अध्ययन हैं । इस श्रुतांग में कथानक पूर्णतया वर्णित नहीं पाये जाते । 'वण्णओ' और 'जाव' शब्दों द्वारा अधिकांश वर्णन व्याख्या - प्रज्ञप्ति अथवा ज्ञाताधर्मकथा - आदि से पूर्ण कर लेने की सूचना मात्र कर दी गयी है ।
स्थानांग में प्रन्तकृद्दशा का जो वर्णन आया है, उससे इसका वर्तमान स्वरूप मेल नहीं खाता । वहां इसके दश ' अध्ययन बतलाये हैं । उन अध्ययनों के नाम इस प्रकार हैं : १. नमि अध्ययन, २. मातंग अध्ययन, ३. सोमिल अध्ययन, ४. रामगुप्त अध्ययन, ५. सुदर्शन अध्ययन, ६. जमालि अध्ययन, ७. भगालि अध्ययन,
१. दस दसानो पण्णत्तानो तं जहा
कम्मविवागदसाओ, उबासगदसाम्रो, अंतगडवसाम्रो, भरगुत्तरोववाइयदसा, श्रायारदसाम्रो, पण्हावागरणदसानो, बंघदसानो, दोगिद्धिदसाओ, दीहदसाप्रो, संखेवियदसाओ ।
- स्थानांग सूत्र; स्थान १०,
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