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पैंतालीस आगम
७. उवासगदसाश्रो ( उपासकदशा)
नामः अर्थ
उपासक का अर्थ श्रावक तथा दशा का अर्थ तद्गतअणुव्रत आदि क्रिया-कलापों से प्रतिबद्ध या युक्त अध्ययन (ग्रन्थ- प्रकरण ) है ।'
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प्रस्तुत श्रुतांग में दश अध्ययन हैं जिनमें दश श्रावकों के कथानक हैं । इन कथानकों के माध्यम से जैन गृहस्थों द्वारा पालनीय धार्मिक नियम समझाये गये हैं । साथ-साथ यह भी बतलाया गया है। fa धर्मोपासकों को अपने धर्म के परिपालन के सन्दर्भ में कितने ही विघ्नों तथा प्रलोभनों का सामना करना पड़ता है, पर, वे उनसे कभी विचलित या धर्मच्युत नहीं होते । अन्त मे बारह गाथाओं द्वारा दशों कथानकों के मुख्य वण्यं विषयों का संकेत करते हुए ग्रन्थ का सार उपस्थित किया गया है ।
श्राचारांग का पूरक
इस श्रुतांग को एक प्रकार से प्राचारांग का पूरक कहा जा सकता है । आचारांग में जहां श्रमण-धर्म का निरूपण किया गया है, वहाँ इसमें श्रमणोपासक - श्रावक या गृहस्थ धर्म का निरूपण किया गया है । आनन्द आदि महावैभवशाली गृहस्थों का जीवन कैसा था, उस समय देश की समृद्धि कैसी थी, इत्यादि विषयों का इस श्रुतांग से अच्छा परिचय मिलता है । प्राचार्य अभयदेवसूरि की इस पर टीका है ।
इसी श्रागम का एक सुन्दर, सरस व हृदयस्पर्शी प्रसंग यहां प्रस्तुत किया जा रहा है- भगवान् महावीर अपनी बृहत् शिष्य मण्डली के साथ वैशाली के समीपस्थ वाणिज्य ग्राम में आये । ईशान कोण स्थित द्य तिपलाश उद्यान में ठहरे । इन्द्रभूति गौतम दो दिन से उपोसित थे । तीसरे दिन पात्र, चीवर और शास्ता की अनुज्ञा ले,
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१. उपासका: श्रावकास्तद्गतारगुव्रतादि क्रियाकलापप्रतिबद्धा दशाध्ययनानि उपासक दशा ।
- श्रभिधान राजेन्द्र ; भा० पृ० १०६४
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