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पैतालीस प्रागम कत्तत्व के प्रश्न को निरस्त करता है । मुर्गी से अण्डा, अण्डे से मुर्गी यही कार्य कारण भाव पहले था, आज है। भविष्य में भी रहेगा। बीज से वृक्ष और वृक्ष से बीज, की भी यही बात है। माता-पिता के क्रम से सन्तति-परम्परा पहले भी चलती थी, आज भी चलती है, भविष्य में नहीं चलेगी, यह सोचने का विषय नहीं है । यह चिन्तन अब बौद्धिक स्तर का नहीं रहा कि किसी समय यह क्रम नहीं चलता था और किसो जगत् में स्रष्टा ने इस कार्य कारण' स्थिति को खड़ा किया। भौतिक, अभौतिक प्रत्येक क्रिया का हेतु आज मनुष्य के लिए बुद्धिगम्य बनता जा रहा है। किसी दिन मनुष्य का ज्ञान प्राज की अपेक्षा बहुत सीमित था तथा वह बादलों में प्रकटित इन्द्र-धनुष को भी ईश्वरीय-लीला के अतिरिक्त कुछ नहीं सोच सकता था। भगवान् महावीर के कथनानुसार विश्व-अस्तित्व की अपेक्षा अनादि, अनन्त तथा परिवर्तन की अपेक्षा सादि, सान्त है। भगवती पागम में लोक विषयक प्रश्न को कई स्थानों पर अनेकान्त की विविध विधाओं से खोला है।
६. रणायाधम्मकहानो (जाताधर्मकथा या ज्ञातृधर्मकथा) नाम की व्याख्या
_णायाधम्मकहानो के तीन संस्कृत-रूपान्तर हो सकते हैंज्ञाताधर्मकथा, ज्ञातृधर्मकथा, न्याय धर्मकथा । अभिधान राजेन्द्र में 'ज्ञाता धर्मकथा' व्याख्या में कहा गया है:-"ज्ञात का अर्थ उदाहरण है। इसके अनुसार इसमें उदाहरण-प्रधान धर्मकथाएं हैं। अथवा इसका अर्थ इस प्रकार भी किया जा सकता है- जिसके प्रथम श्रुतस्कन्ध में ज्ञात अर्थात् उदाहरण हैं तथा दूसरे श्र त-स्कन्ध में धर्म कथायें हैं, वह 'ज्ञाताधर्गकथा' है।"
ज्ञातृधर्मकथा की व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है:-ज्ञातृ अर्थात् ज्ञातृ कुलोत्पन्न या ज्ञातृपुत्र भगवान् महावीर द्वारा उपदिष्ट १. ज्ञातान्युदाहरणानि तत्प्रधाना धर्मकथा ज्ञाताधर्मकथा अथवा
ज्ञातानि ज्ञाताध्ययनानि प्रथमश्र तस्कन्धे, धर्मकथा द्वितीये, यासु ग्रन्थपद्धतिषु ता ज्ञाताधर्मकथाः ।।
-अभिधान राजेन्द्र; चतुर्थ भाग, पृ० २००६
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