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जैनागम दिग्दर्शन के कारण हुए अंग का नाम व्याख्या-प्रज्ञप्ति है। संक्षेप में भगवती सूत्र भी कहा जाता है। इसमें इकतालीस शतक हैं। प्रत्येक शतक अनेक उद्देशों (उद्देशकों) में बंटा हुअा है । प्रथम से आठ तक, बारह से चौदह तक तथा अठारह से बीस तक के शतकों में से प्रत्येक में दश-दश उद्देशक हैं । इसके अतिरिक्त अवशिष्ट शतकों में उद्देशों की संख्याए न्यूनाधिक पाई जाती हैं। पन्द्रहवें शतक का उद्देशों में विभाजन नहीं है। उसमें मंखलिपुत्र गोशालक का चरित्र है। यह अपने आप में एक स्वतन्त्र ग्रन्थ जैसा प्रतीत होता है। व्याख्या-प्रज्ञप्ति का सूत्र-क्रम से भी विभाजन प्राप्त होता है इसमें कुल सूत्र-संख्या ८६७ है। वर्णन-शैली
व्याख्या-प्रज्ञप्ति की वर्णन-शैली प्रश्नोत्तर के रूप में है। गणघर गौतम जिज्ञासु-भाव से प्रश्न उपस्थित करते हैं और भगवान् महावीर उनका उत्तर देते हैं या समाधान करते हैं। टीकाकार आचार्य अभयदेवसूरि ने इन प्रश्नोंत्तरो की संख्या छत्तीस हजार बतलाई है। उन्होंने पदों की संख्या दो लाख अठासी हजार दी है। इसके विपरीत समवायांग में पदों की संख्या चौरासी हजार तथा नन्दी में एक लाख चौतालीस हजार बतलाई गयी है।
कहीं-कहीं प्रश्नोत्तर बहुत छोटे-छोटे हैं । उदाहरणार्थप्रश्न- भगवन् ! ज्ञान का फल क्या है ?, उत्तर - विज्ञान । १. वि विविधाः-जीवाजीवादिप्रचुरपदार्थविषयाः, प्रा-अभिविधिना
कथंचिनिखिलज्ञेयव्याप्त्या मर्यादया, वा-परस्परासंकीर्णलक्षणाभि - धानरूपयाझ्याः ख्यानानि-भगवतो महावीरस्य गौतमादिविनेयाप्रतिप्रश्नितपदार्थप्रतिपादनानि व्याख्यास्ताः प्रज्ञाप्यन्ते प्ररूप्यन्ते भगवता
सुधर्मस्वामिना जम्बूनामानमभियस्याम् ।। ...."अथवा विवाहा-विविधा विशिष्टा वाऽर्थप्रवाहा नयप्रवाहा वा प्रज्ञाप्यन्ते-प्ररूप्यन्ते प्रबाध्यन्ते वा यस्याम्.......
-अभिधान राजेन्द्र; षष्ठ भाग, पृ० १२३८.
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