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पैतालीस प्रागम
आचारांग के प्रथम श्रु त-स्कन्ध के नौ अध्ययनों, सूत्रकृतांग के प्रथम श्रत-स्कन्ध के सोलह अध्ययनों, णायाधम्मकहाओ के प्रथम श्र तस्कन्ध के उन्नीस अध्ययनों, दृष्टिवाद के कतिपय सूत्रों का त्रैराशिका सूत्र-पद्धति से रचे जाने, उत्तराध्ययन के छतीस अध्ययनों तथा चौवालीस ऋषि भाषित अध्ययनों, अन्तिम रात्रि में भगवान महावीर द्वारा प्ररूपित पचपन अध्ययनों तथा व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र के चौरासी हजार पदों आदि का इसमें उल्लेख हैं। नन्दी सूत्र की भी इसमें चर्चा है। इन उल्लेखों से ऐसा प्रकट होता है कि द्वादशांग के सूत्र-बद्ध हो जाने के पश्चात् इसका लेखन हुआ। वर्णन-क्रम
समवायांग में कुलकरों, चौवीस तीर्थंकरों, चक्रवतियों, बलदेवों एवं वासुदेवों का, उनके माता-पिता, जन्मस्थान आदि का नामानुक्रम से वर्णन किया गया है। उत्तम शलाका, पुरुषों की संख्या चौवन (तीर्थंकर २४, चक्रवर्ती १२, बासुदेव ६, बलदेव +-५४) दी गई हैं, तिरेसठ नहीं। वहां प्रतिवासुदेवों को शलाका पुरुषों में नहीं लिया गया है। इससे यह सम्भावित प्रतीत होता है कि उन्हें बाद में शलाका पुरुषों में स्वीकार किया गया हो। यह सारा वर्णन समवायांग के जिस अंश में है, उसे एक प्रकार से संक्षिप्त जैन पुराण की संज्ञा दी जा सकती है । जैन पुराणों के उपजीवक के रूप में निश्चय ही इस भाग का बड़ा महत्व है। भगवान् ऋषभ को यहां कौशलीय तथा भगवान महावीर को वैशालीय कहा गया है, इससे भगवान् महावीर के वैशाली के नागरिक होने का तथ्य पुष्ट होता है।
समवायांग में लेख, गणित, रूपक, नाट्य, गीति, वाद्ययंत्र आदि बहत्तर कलाओं का वर्णन है। ब्राह्मी लिपि आदि अठारह लिपियों तथा ब्राह्मी के छयालीस मातृका-अक्षरों की चर्चा है । इस पर प्राचार्य अभयदेवसूरि की टीका है।
५. विवाह-पण्णत्ति (व्याख्या-प्रज्ञप्ति) जीव-अजीव आदि पदार्थों की विशद, विस्तृत व्याख्या होने १. मंखलिपुत्र गोशालक का मत
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