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पैतालीस आगम गये हैं। धर्म-कथा, अर्थ-कथा और काम-कथा, तीन प्रकार की कथाओं का उल्लेख है । वृक्ष तीन प्रकार के बतलाये गये हैं। भगवान् महावीर के तीर्थ-धर्म संघ में हुये सात निह नवों (धर्मशासन से विमुख और अपलापक - विपरीत प्ररुपणा करने वालों) की भी चर्चा पाई है। भगवान् महावीर के तीर्थ में (जिन नौ पुरुषों ने तीर्थंकरगोत्र बांधा, यथाप्रसंग उनका भी उल्लेख है। इस प्रकार संख्यानुक्रम के आधार पर इसमें विभिन्न विषयों का वर्णन प्राप्त होता है, जो अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। दर्शन-पक्ष
एक प्रकार से प्रारम्भ कर दश प्रकार तक के मूर्त-अमूर्त भावों का जहां दिग्दर्शन है, वहां दर्शन का भी कौन-सा विषय अछूता रह सकता है ? मूल में जहां संकेत है, व्याख्या-ग्रन्थों में उन्हीं संकेत-सूत्रों पर विस्तृत चर्चा भी है । ठाणांग में हेतुवाद का भी निरूपण है। वह न्याय विषय का सूचन-मात्र है। वहाँ हेतु, प्रमाण और हेत्वाभासों को एक ही संज्ञा से अभिहित किया गया है। व्याख्याकारों ने उन पर यथावस्थित प्रकाश डाला है। स्थानांग का प्रतिपादन निम्नोक्त क्रम से है : ..
हेउ चउन्विहे पण्णत्ते, तंजहा-जावए, थावए, वंसए, लूसए।
हेतु चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे-यापक, स्थापक, व्यंसक और लूषक ।
___ अहवा हेउ चउविहे पण्णत तंजहा-पच्चक्खे, अणुमारणे, प्रोवम्मे, आगमे। ___अथवा हेतु चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे-प्रत्यक्ष, अनुमान, प्रौपम्य, आगम ।
_अहवा हेउ चउविहे पण्डत्ते, तंजहा-अस्थि ते अस्थि, अत्थि ते पत्थि, रणत्थित्त अत्थि. पत्थित रणत्थि।
. तात्पर्य यह है, तो वह भी है। यह है, तो वह नहीं है। यह नहीं, तो वह है। यह नहीं, तो वह भी नहीं है ।
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