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जैनागम दिग्दर्शन पाक मुनि--एक वर्ष में एक ही प्राणो मारते हो और फिर चाहे अन्य जीवों को नहीं भी मारते, किन्तु इतने भर से तुम दोष मुक्त नहीं हो जाते । अपने निमित्त एक ही प्राणी का वध करने वाले तुम्हारे और गृहस्थों में थोड़ा ही अन्तर है। तुम्हारे जैसे आत्म-अहित करने वाले मनुष्य कभो केवल-ज्ञानी नहीं हो सकते।
तथारूप स्वकल्पित धारणाओं के अनुसरण करने की अपेक्षा जिस मनुष्य ने ज्ञानी के आज्ञानुसार मोक्ष मार्ग में मन, वचन, काया से अपने आपको स्थित किया है तथा जिसने दोषों से अपनी आत्मा का संरक्षण किया है और इस संसार-समुद्र को तैरने के साधन प्राप्त किये हैं, वही पुरुष दूसरों को धर्मोपदेश दे। व्याख्या-साहित्य
प्राचार्य भद्रबाहु ने सूत्रकृतांग पर नियुक्ति की रचना की। आचार्य शीलांक ने वाहरि गणी के सहयोग से टीका लिखी । चूणि भी लिखी गयी । श्री हर्षकुल और श्री साधुरंग द्वारा दीपिकानों की रचना हयी । डा० हर्मन जेकोबी ने अंग्रेजी में अनुवाद किया जो Sacred Books of the East के पैंतालीसवें भाग में आक्सफोर्ड से प्रकाशित हुआ।
. ३. ठारणांग (स्थानांग) - दश अध्ययनों में यह श्र तांग विभाजित है। इसमें ७८३ सूत्र हैं । उपर्युक्त दो श्रु तांगों से इसकी रचना भिन्न कोटि की है। इसके प्रत्येक अध्ययन में, अध्ययन की संख्या के अनुसार वस्तु-संख्यायें गिनाते हुये वर्णन किया गया है । एक लोक, एक अलोक, एक धर्म, एक अधर्म, एक दर्शन, एक चरित्र, एक समय आदि । इसी प्रकार दूसरे अध्ययन में उन वस्तुओं की गणना और वर्णन आया है, जो दो-दो हैं- जैसे दो क्रियायें आदि । इसी क्रम में दशवें अध्ययन तक यह वस्तुभेद और वर्णन दश की संख्या तक पहुंच गया है । इस कोटि की वर्णन-पद्धति की दृष्टि से यह श्रु तांग पालि बौद्ध ग्रन्थ अगुत्तर निकाय से तुलनीय है।
नाना प्रकार के वस्तु-निर्देश अपनी-अपनी दृष्टि से बड़े महत्व के हैं । उदाहरणार्थ, ऋक्, यजुष और साम, ये तीन वेद बतलाये
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