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पैतालीस आगम
पाक मुनि-मार्जार की तरह घर-घर भटकने वाले दो हजार स्नातकों को जो खिलाता है,मांसाहारी पक्षियों से परिपूर्ण तथा तीव्र वेदनामय नरक में जाता है। दया-प्रधान धर्म की निन्दा और हिंसा प्रधान धर्म की प्रशंसा करने वाला मनुष्य एक भी शोल रहित ब्राह्मण को खिलाता है, तो वह अन्धकारयुक्त नरक में भटकता है। उसे देव-गति कहां है ? प्रात्मावतवादी
प्रात्माद्वैतवादी-पाक मुनि ! अपने दोनों का धर्म समान है । वह भूत में भी था और भविष्य में भी रहेगा । अपने दोनों धर्मों में प्राचार प्रधान शील तथा ज्ञान को महत्व दिया गया है। पुनर्जन्म की मान्यता में भी कोई भेद नहीं है। किन्तु हम एक अव्यक्त, लोकव्यापी, सनातन, अक्षय और अव्यय आत्मा को मानते हैं। वह प्राणिमात्र में व्याप्त है, जैसे-चन्द्र तारिकाओं में।
आर्द्र क मुनि - यदि ऐसा ही है, तो फिर ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व दास, इसी प्रकार कीड़े, पंखी, सर्प, मनुष्य व देव आदि भेद ही नहीं रहेंगे और वे पृथक्-पृथक् सुख-दुःख भोगते हुये इस संसार में भटकेंगे भी क्यों ?
परिपूर्ण कैवल्य से लोक को समझे बिना जो दूसरों को धर्मोपदेश करते हैं,वे अपना और दूसरों का नाश करते हैं । परिपूर्ण कैवल्य से लोक-स्वरूप को समझकर तथा पूर्ण ज्ञान में समाधियुक्त बन कर जो धर्मोपदेश करते हैं, वे स्वयं तर जाते हैं और दूसरों को भी तार लेते हैं।
इस प्रकार तिरस्कार योग्य ज्ञान वाले आत्माद्वैतवादियों को और सम्पूर्ण ज्ञान,दर्शन,चारित्र युक्त जिनों को अपनी समझ में समान बतला कर हे आयुष्मन् ! तू अपनी ही विपरीतता प्रकट करता है । हस्ती तापस
हस्ती तापस-हम एक वर्ष में एक बड़े हाथी को मारकर अपनी आजीविका चलाते हैं। ऐसा हम अन्य समस्त प्राणियों के प्रति अनुकम्पा बुद्धि रखते हुये करते हैं।
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