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जैनागम दिग्दर्शन
कहना, क्या यह संयमी पुरुष के लक्षण हैं ? स्थूल और पुष्ट भेड़ को मारकर, उसे अच्छी तरह से काटकर, उसके मांस में नमक डालकर, तेल में तल कर,पिप्पली आदि द्रव्यों से बघार कर तुम्हारे लिए तैयार करते हैं; उस मांस को तुम खाते हो और यह कहते हो कि हमें पाप नहीं लगता; यह सब तुम्हारे दुष्ट स्वभाव तथा रस-लंपटता का सूचक है। इस प्रकार का मांस कोई अनजान में भी खाता है, वह पाप करता है; फिर यह कहकर कि हम जान कर नहीं खाते; इसलिए हमें दोष नहीं है, सरासर झूठ नहीं तो क्या है ?
प्राणि-मात्र के प्रति दया-भाव रखने वाले, सावद्य दोषों का वर्जन करने वाले ज्ञातपुत्रीय भिक्षु दोष की आशंका से उद्दिष्ट भोजन का ही विवर्जन करते हैं। जो स्थावर और जंगम प्राणियों को थोड़ी भी पीड़ा हो, ऐसा प्रवर्तन नहीं करते हैं, वे ऐसा प्रमाद नहीं कर सकते । संयमी पुरुष का धर्म-पालन इतना सूक्ष्म है।
जो व्यक्ति प्रतिदिन दो-दो सहस्र स्नातक भिक्षुत्रों को भोजन खिलाता है, वह तो पूर्ण असंयमी है । लोही से सने हाथ वाला व्यक्ति इस लोक में भी तिरस्कार का पात्र है, उसके परलोक में उत्तम गति की तो बात ही कहां ?
जिस वचन से पाप को उत्तेजन मिलता है, वह वचन कभी नहीं बोलना चाहिए। तथाप्रकार की तत्त्व-शुन्य वाणी गुणों से रहित है। दीक्षित कहलाने वाले भिक्षुओं को तो वह कभी बोलनी ही नहीं चाहिए।
हे भिक्षुग्रो ! तुमने ही पदार्थ का ज्ञान प्राप्त किया है और जीवों के शुभाशुभ कर्म-फल को समझा है । सम्भवतः इसी विज्ञान से तुम्हारा यश पूर्व व पश्चिम समुद्र तक फैला है और तुमने ही समस्त लोक को हस्तगत पदार्थ की तरह देखा है ? वेदवादी ब्राह्मण
वेदवादी-जो प्रतिदिन दो सहस्र स्नातक ब्राह्मणों को भोजन खिलाता है, वह पुण्य की राशि एकत्रित कर देव-गति में उत्पन्न होता है, ऐसा हमारा वेद-वाक्य है।
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