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पैतालीस आगम
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पाक मुनि-महावीर नवीन कर्म नहीं करते। पुराने कर्मों का नाश करते हैं । वे मोक्ष का उदय चाहते हैं, इस अर्थ में वे लाभार्थी हैं, यह मैं मानता हूं। वणिक तो हिंसा, असत्य, अब्रह्म
आदि अनेक पाप-कर्म करने वाले हैं और उनका लाभ भी चार गति में भ्रमण रूप है । भगवान् महावीर जो लाभ अजित कर रहे हैं, उसकी आदि है. पर अन्त नहीं है । वे पूर्ण अहिंसक, परोपकारक और धर्म-स्थित हैं। उनकी तुलना तुम आत्म-अहित करने वाले वणिक के साथ कर रहे हो, यह तुम्हारे अज्ञान के अनुरूप ही है । बौद्ध मिक्षु
बौद्ध भिक्षु-कोई पुरुष खली के पिण्ड को मनुष्य मानकर पकाये अथवा तुम्बे को बालक मानकर पकाये, तो वह हमारे मत के अनुसार पुरुष और बालक के वध का ही पाप करता है। इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति पुरुष व बालक को खली व तुम्बा समझ कर भेदित करता है व पकाता है, तो वह पुरुष व बालक के वध करने का पाप उपाजित नहीं करता । साथ-साथ इतना और कि हमारे मत में वह पक्व मांस पवित्र और बुद्धों के पारणे के योग्य है।
आर्द्र ककुमार ! हमारे मत में यह भी माना गया है कि जो व्यक्ति प्रतिदिन दो सहस्र स्नातक (बोधि सत्व) भिक्षुओं को भोजन कराता है, वह देवगति में आरोग्य नामक सर्वोत्तम देव होता है।
पाककुमार-इस प्रकार प्राण-भूत की हिंसा करना और उसमें पाप का अभाव कहना, संयमी पुरुष के लिए उचित नहीं है। इस प्रकार का जो उपदेश देते हैं और जो सुनते हैं, वे दोनों ही प्रकार के लोग अज्ञान और अकल्याण को प्राप्त करने वाले हैं। जिसे प्रमादरहित होकर संयम और अहिंसा का पालन करना है और जो स्थावर व जंगम प्राणियों के स्वरूप को समझता है, क्या वह कभी ऐसी बात कह सकता है ? जो तुम कहते हो ? बालक को तुम्बा समझकर
और तुम्बे को बालक समझकर पका ले, क्या यह कोई होने वाली बात हैं ? जो ऐसा कहते हैं, वे असत्य-भाषी और अनार्य हैं। .. मन में तो बालक को बालक समझना और ऊपर से उसे तुम्बा
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