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________________ पैतालीस आगम ४६ तथा प्राचार्य शीलांक रचित टीका के साथ सन् १९३५ में पागमोदय समिति, बम्बई द्वारा इसका प्रकाशन हुअा। २. सूयगडंग (सूत्रकृतांग) सूत्र कृतांग के नाम सूत्रकृतांग के लिए सूयगड, सुत्तकड तथा सूयागड; इन तीन शब्दों का प्रयोग हुआ है । सूयगड या सुत्तकड का संस्कृत-रूप सूत्रकृत है। इसकी शाब्दिक व्याख्या इस प्रकार है :-अर्थरूपतया तीर्थङ्करों से सूत्र का उद्भव हया । उससे गणधरों द्वारा किया गया या निबद्ध किया गया ग्रन्थ । इस प्रकार सूत्रकृत शब्द का फलित होता है। अथवा सूत्र के अनुसार जिसमें तत्वावबोध कराया गया हो, वह सूत्रकृत है । सूयागड का संस्कृत रूप सूत्राकृत है । इसका अर्थ है-स्व और पर समय-सिद्धान्त का जिसमें सूचन किया गया हो,वह सूचाकृत या सूयागड है।। सूत्र का अर्थ भगवद्भाषित और कृत का अर्थ उसके आधार पर गणधरों द्वारा किया गया या रचा गया, इस परिधि में तो समस्त द्वादशांगी ही समाहित हो जाती है; अतः सूत्रकृतांग की ही ऐसी कोई विशेषता नहीं है । स्व-अपने, पर-दूसरों के समय-सिद्धान्तों या तात्विक मान्यताओं के विवेचन का जो उल्लेख किया गया है, वह महत्वपूर्ण है। वैसा विवेचन इसी आगम में है, अन्य किसी में नहीं। सूत्रकृतांग का स्वरूप : कलेवर दो श्रु त-स्कन्धों में विभक्त है। प्रथम श्रुत-स्कन्ध में सोलह तथा दूसरे में सात अध्ययन हैं। पहला श्रुत-स्कन्ध प्रायः पद्यों में १. सूयगडं अंगाणं, बितियं तस्स य इमाणि नामाणि।। सूयगडं सुत्तकडं, सूयागडं चेव गोणाई ॥२॥ सूत्रकृतमिति -एतदंगानां द्वितीयं तस्य चामून्येकाथिकानि, तद्यथासूत्रमुत्पन्नमर्थरूपतया तीर्थकृद्भ्यः ततः कृतं ग्रन्थरचनया गणवरैरिति, तथा सूत्रकृतमिति सूत्रानुसारेण तत्वावबोधः क्रियतेऽस्मिन्निति, तथा सूचाकृतमिति स्वपरसमयार्थसूचनं सूचा सास्मिन् कृतेति । एतानि चास्य गुणनिष्पन्नानि नामानीति। -अभिधान राजेन्द्र; सप्तम भाग, पृ० १०२७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002628
Book TitleJainagama Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni, Mahendramuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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