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________________ न एकादश अंग ज्ञान रहा । यह समय वीर- निर्वाण 683 तक का होता है | श्रुत प्रवस्थिति के विषय में यह मौलिक मतभेद है । श्वेताम्बर परम्परा में मान्य 'श्रागम' दिगम्बर परम्परा के आधारभूत शास्त्र नहीं बनते। उस परम्परा में जो प्राधारभूत शास्त्र हैं, उनका विवरण संक्षेप में यह है कि वीर- निर्वाण 683 के पश्चात् पूर्वज्ञान व अंग-ज्ञान की प्रांशिक रूप से धारणा करने वाले कुछ आचार्य हुए। उनमें से पुष्पदन्त और भूतबलि प्राचार्यों ने द्वितीय पूर्व प्रग्रायणी के प्रांशिक आधार पर 'षट्खण्डागम' की रचना की । आचार्य गुणधर न पांचवें पूर्व ज्ञानप्रवाद के प्रांशिक आधार पर 'कषाय 'पाहुड' की रचना की । प्राचार्य भूतबलि ने 'महाबंध ' का प्रणयन किया । आचार्य वीरसेन ने आगे चलकर इन ग्रन्थों पर धवला और जयधवला टीकाएं लिखीं । उक्त ग्रन्थ व टीकाएं दिगम्बर परम्परा में प्रागमवत् मान्य हैं। इनके अतिरिक्त प्राचार्य कुन्दकुन्द के समयसार, प्रवचनसार, पंचास्तिकायसार व नियमसार और आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती के गोम्मटसार, लब्धिसार व द्रव्यसंग्रह आदि भी आगमवत् मान्य हैं । आगम ज्ञान के अस्तित्व - प्रश्न पर दोनों परम्पराम्रों में भले ही मौलिक मतभेद रहा है, पर दोनों परम्पराम्रों के प्रावारभूत ग्रन्थों से जो फलित प्रसूत हुआ है, वह जैन दर्शन व जैन संस्कृति को द्विरूप या विरूप करने वाला नहीं । जैन दर्शन के तात्विक व दार्शनिक रूप को प्रस्तुत करने वाला तत्वार्थ सूत्र ग्रन्थ व उसके रचयिता उमास्वाति ( दिगम्बर मान्यता में उमास्वामी ) दोनों परम्परात्रों में समान रूप से मान्य हैं। दोनों पक्षों के लिए यह एक योजक कड़ी है । अन्य भी आधारभूत मान्यताएं दोनों परम्पराओं की समान हैं । भेद-मूलक तो स्त्री - मुक्ति, केवली - आहार, अचेलकता, भगवान् महावीर का पाणिग्रहण, काल द्रव्य का रूप आदि कुछ ही मान्यताएं हैं । समग्र दर्शन को तोलने पर इनका वजन बहुत ही कम रह जाता है । निष्कर्ष रूप में यही कहा जा सकता है, दोनों शास्त्रीय धाराों का इतिवृत्त कुछ भी रहा हो, दोनों के प्रतिपादन साम्य ने किसी भी धारा को न्यून नहीं होने दिया है । (iii) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002628
Book TitleJainagama Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni, Mahendramuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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