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४२.
जैनागम दिग्दर्शन
अंग प्रविष्ट तथा अंग बाह्य के रूप में जिन प्रागम-ग्रन्थों की चर्चा की गयी है, उनमें कुछ उपलब्ध नहीं हैं। जो उपलब्ध हैं, उनमें कुछ नियुक्तियों को सन्निहित कर श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सम्प्रदाय ४५ आगम-ग्रन्थों को प्रमाण-भूत मानता है। वे अंग, उपांग, छेद तथा मूल आदि के रूप में विभक्त हैं।
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