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जैनागम विचार
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जीवी वाङमय का उससे भी उत्कृष्ट संकलन तथा सम्पादन करने का विशेष उत्साह उनमें रहा हो और उन्होंने इस वाचना की प्रायोजना की हो। फलतः इसमें कालिक श्रु त के अतिरिक्त अनेक प्रकरण-ग्रन्थ भी संकलित किये गये, विस्तृत पाठ वाले स्थलों को अर्थ-संगति पूर्वक व्यवस्थित किया गया।
इस प्रकार की और भी कल्पनाएं की जा सकती हैं। पर इतना तो मानना होगा कि कोई-न-कोई कारण ऐसा रहा है, जिससे समसामयिकता या समय के थोड़े से व्यवधान से ये वाचनाएं आयोजित की गयीं। कहा जाता है, इन वाचनाओं में वाङमय लेख-बद्ध भी किया गया।
दोनों वाचनाओं में संकलित साहित्य में अनेक स्थलों पर पाठान्तर या वाचना-भेद भी दृष्टिगत होते हैं। ग्रन्थ-संकलन में भी कुछ भेद रहा है। ज्योतिष्करण्डक की टीका' में उल्लेख है कि अनुयोगद्वार आदि सूत्रों का संकलन माथुरी वाचना के आधार पर किया गया। ज्योतिष्करण्डक आदि ग्रन्थ वालभी वाचना से गृहीत हैं। उपयुक्त दोनों वाचनाओं की सम्पन्नता के अनन्तर प्राचार्य स्कन्दिल और नागार्जुन सूरि का परस्पर मिलना नहीं हो सका। इसलिए दोनों वाचनाओं में संकलित सूत्रों में यत्र-तत्र जो पाठ-भेद चल रहा था, उसका समाधान नहीं हो पाया और वह एक प्रकार से स्थायी बन गया। तृतीय वाचना
उपयुक्त दोनों वाचनाओं के लगभग डेढ शताब्दी पश्चात् अर्थात् वीर-निर्वाणानन्तर ६८०वें या ६६३वें वर्ष में वलभी में फिर उस युग के महान् आचार्य और विद्वान् देवद्धिगणी क्षमाश्रमण के नेतृत्व में तीसरी वाचना आयोजित हुई। इसे वलभी की दूसरी
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