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________________ ३४ जैनागम दिग्दर्शन थी; अतः 'माथुरी वाचना' कहलाई। इसका समय वही अर्थात् परिनिर्वाणाब्द ८२७ और ८४० के मध्य होना चाहिये, जो आचार्य स्कन्दिल का युगप्रवान-काल है। वालभी वाचना लगभग माथुरी वाचना के समय में ही वलभी-सौराष्ट्र में नागार्जुन सूरि के नेतृत्व में एक मुनि-सम्मेलन आयोजित हुआ, जिसका उद्देश्य विस्मृत श्रु त को व्यवस्थित करना था। उपस्थित मनियों की स्मृति के आधार पर श्र तोद्धार किया गया। इस प्रकार जितना उपलब्ध हो सका, वह सारा वाङ्मय सुव्यवस्थित किया गया। नागार्जुन सूरि ने समागत साधुओं को वाचना दो। प्राचार्य नागार्जुन सूरि ने इस वाचना की अध्यक्षता या नेतृत्व किया। उनकी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका थी; यह नागार्जुनीय वाचना कहलाती है। वलभी की पहली वाचना के रूप में इसकी प्रसिद्धि है। एक ही समय में दो वाचनाएँ ? . कहा जाता है, उक्त दोनों वाचनाओं का समय लगभग एक ही है। ऐसी स्थिति में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि एक ही समय में दो भिन्न स्थानों पर वाचनाएँ क्यों आयोजित की गयीं ? वलभी में आयोजित वाचना में जो मुनि एकत्र हुए थे, वे मथुरा भी जा सकते थे। इसके कई कारण हो सकते हैं : १. उत्तर भारत और पश्चिम भारत के श्रमण-संघ में स्यात् किन्हीं कारणों से मतैक्य नहीं हो। इसलिए वलभी में सम्मिलित होने वाले मुनि मथुरा में सम्मिलित नहीं हुए हों। उनका उस (मथुरा में आयोजित) वाचना को समर्थन न रहा हो। २. मथुरा में होने वाली वाचना की गतिविधि, कार्यक्रम, पद्धति तथा नेतृत्व आदि से पश्चिम का श्रमण-संघ सहमत न रहा हो। ३. माथुरी वाचना के समाप्त हो जाने के पश्चात् यह वाचना आयोजित की गयी हो। माथुरी वाचना में हुआ कार्य पश्चिमी श्रमण संघ को पूर्ण सन्तोषजनक न लगा हो; अतः प्रागम एवं तदुप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002628
Book TitleJainagama Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni, Mahendramuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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