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आगम विचार
विशेषावश्यक भाष्य के वृत्तिकार मलधारी हेमचन्द्र ने २५११वीं गाथा की व्याख्या में प्रसंगोपात्ततया यह सूचित किया है कि “दुर्बलिका पुष्यमित्र के अतिरिक्त प्रार्य रक्षित के तीन मुख्य शिष्य और थेविन्ध्य, फल्गुरक्षित और गोष्ठामाहिल । श्राचार्य रक्षित ने दुर्बलिका पुष्यमित्र को आदेश दिया, वे विन्ध्य को पूर्वों की वाचना दें । दुर्बलिका पुष्यमित्र वाचना देने लगे । पर पुनरावृत्ति न कर पाने के कारण नवम पूर्व की उनको विस्मृति होने लगी । प्राचार्य रक्षित को उस समय लगा, ऐसे बुद्धिशाली व्यक्ति को भी यदि सूत्रार्थ विस्मृत होने लगे हैं, तब भविष्य में और अधिक कठिनाई उत्पन्न हो जायेगी । उन्होंने इस विवशता से प्रेरित होकर पृथक्-पृथक् अनुयोगों की व्यवस्था की ।"
अनुयोगों के आधार पर सूत्रों का विभाजन निम्नांकित प्रकार से हुआ : '
१. प्रथम — चरणकरणानुयोग में कालिक श्रुत- ग्यारह अंग, महाकल्प श्रुत तथा छेद सूत्र ।
२. द्वितीय - धर्मकथानुयोग में ऋषिभाषित ।
३. तृतीय - गणितानुयोग में सूर्यप्रज्ञप्ति आदि । ४. चतुर्थ - द्रव्यानुयोग में दृष्टिवाद ।
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आगमों की प्रथम वाचना
में
अनेक स्रोतों से यह विदित होता है कि चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्य बारह वर्षों का भीषण दुर्भिक्ष पड़ा । जनता अन्नादि खाद्य पदार्थों के प्रभाव में त्राहि-त्राहि करने लगी । भिक्षोपजीवी श्रमणों को भी
१. कालियसुयं च इसिमासियाई तइमा य सूरपन्नती । सव्वो य दिवाम्रो चउत्थम्रो होइ श्रणुप्रोगो ॥ जं च महाकप्पसुयं जाणि श्र से सारिण छेयसुत्ताणि । चरणकररणा प्रोगो त्ति कालियत्थे उवगयाणि ॥
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विशेषावश्यक भाष्य : २२६४-६५
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