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जैनागम दिग्दर्शन
व्याख्या चारों अनुयोगों में होती थी वहां चारों में से अमुक अनुयोग के आधार पर व्याख्या किये जाने का वहां प्राशय है
श्रार्य रक्षित द्वारा विभाजन
अनुयोग-विभाजन का कार्य श्रार्य रक्षित द्वारा सम्पादित हुआ । आरक्षित वज्र के पट्टाधिकारी थे । वे महान् प्रभावक थे, देवेन्द्रों द्वारा अभिपूजित थे । उन्होंने युग की विषमता को देखते हुए कहां, कौनसा अनुयोग व्याख्येय है, इसका मुख्यता की दृष्टि से चार प्रकार से विभाजन किया- सूत्र -ग्रन्थों को चार अनुयोगों में बांटा । '
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आर्य रक्षित ने शिष्य पुष्यमित्र - दुर्बलिका पुष्यमित्र को, जो मति, 'मेधा' और धारण आदि समग्र गुणों से युक्त थे, कष्ट से श्रुतार्णव को धारण करते देख कर, अतिशय ज्ञानोपयोग द्वारा यह जाना कि लोग क्षेत्र और काल के प्रभाव से भविष्य में मति, मेधा और धारणा से परिहीन होंगे। उन पर अनुग्रह करते हुए उन्होंने कालिक प्रदिश्रुत के विभाग द्वारा अनुयोग किये ।
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१. पुहुत्ते प्रभोगे चत्तारि दुवार मासए एगो ! हुताोगकरणे ते प्रत्थ तम्रो विवोच्छिन्ना ॥ किं वरेहि पुहुत्तं कयमह तदणंतरेहि भरिणयम्मि । तदतरेहिं तदमिहिय गहिय सुत्तत्थसरिहिं || देविदवं दिएहिं महाणुभावेहि रक्खियज्जेहं । जुगमासज्ज विभत्तो रणभोगो तो कभी चउहा ॥ विशेषावश्यक भाष्य : २२८६-८८
२. मति = प्रवबोध-शक्ति
३. मेधा पाठ-शक्ति
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४. धारणा = अवधारणा शक्ति
५. ऐदंयुगीन पुरुषानुग्रहबुद्ध, या चरणकरण द्रव्य धर्मकथा गरिणतानुयोग
भेदाच्चतुर्धा ।
सूत्रकृतांगटीका, उपोद्घात
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६. नाऊण रक्खियज्जो मइमेहाधाररणासभगापि । किच्छेण घरे मारणं सुयावं पूसमित्तं ति ॥ utternut प्रोगो मइमेहाघारणाइपरिहीणे । नाऊ गमेस पुरिसे खेत्तं कालारणभावं च ॥ सानुग्गहोरोगे वीसु कासी य सुयविभागे णं ॥
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- विशेषावश्यक भाष्य : २२८६.६१
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