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जैनागम दिग्दर्शन
सूक्ष्म जीवादि भाव-निरूपण में भी 'वस्तु' शब्द अभिहित है।' ऐसा भी माना जा जाता है, सब दृष्टियों को इसमें अवतारणा है ।। पूर्व-विच्छेद-काल
श्वेताम्बर-मान्यता के अनुसार प्राचार्य स्थूलभद्र के देहावसान के साथ अन्तिम चार पूर्वो का विच्छेद हो गया जो उन्हें सूत्रात्मक रूप में प्राप्त थे, अर्थात्मक रूप में नहीं। तदनन्तर दश पूर्वो की परम्परा आर्य वज्र तक चलती रही। नन्दी स्थविरावली के अनुसार आर्य वज्र भगवान महावीर के १८ वें पट्टधर थे। उनका देहावसान वीर-निर्वाणाब्द ५८४ में माना जाता हैं। आर्य वज्र के स्वर्गवास के साथ दशम पूर्व विच्छिन्न हो गया। अनुयोग का अर्थ
अनुयोग शब्द अनु और योग के संयोग से बना है। अनु अपसर्ग यहाँ प्रानुकूल्यार्थवाचक है। सूत्र (जो संक्षिप्त होता है) का, अर्थ (जो विस्तीर्ण होता है) के साथ अनुकूल, अनुरूप या सुसंगत संयोग अनुयोग कहा जाता है। प्रागमों के विश्लेषण तथा व्याख्यान के प्रसंग में प्रयुक्त विषय-विशेष का द्योतक है । अनुयोग चार भेदों में विभक्त किये गये हैं: १. चरणकरणानुयोग.४ २. धर्मकथानुयोग, ३. गणितानुयोग तथा ४. द्रव्यानुयोग ।५ आगमों में इन चार अनुयोगों का विवेचन है । कहीं विस्तार से वर्णित हुए हैं और कहीं संक्षेप
१. श्रोत्रपेक्षया सूक्ष्मजीवादि भावकथने । २. सर्वदृष्टीनां तत्र समवतारस्तस्य जनके ।
अभिधान राजेन्द्र : चतुर्थ भाग, पृ० २५१६ ३. चत्तारिउ पण प्रोगा, चरणे धम्मगणियाणप्रोगे य । दवियाऽणुप्रोगे य तहा, जहकम्मं ते महड्ढ़ीया ।
-अभिधान राजेन्द्र : प्रथम भाग, पृ० ३५६ ४. चरण का अर्थ चर्या, प्राचार या चारित्र्य है। इस सम्बन्ध में जहां
विवेचन-विश्लेषण हो, वह चरणकरणानुयोग है । ५. द्रव्यों के सन्दर्भ में सबसत्पर्यायालोचनात्मक विश्लेषण या विशद विवेचन
जिसमें हो, वह द्रव्यानुयोग है।
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