SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पागम विचार चूलिकायों की संख्या पूर्वगत के अन्तर्गत चतुर्दश पूर्वो में प्रथम चार पूर्वो की चूलिकाएं हैं। द्रश्न उपस्थित होता है, दृष्टिवाद के भेदों में पूर्वगत एक भेद है। उसमें चतुर्दश पूर्वो का समावेश है। उन पूर्वो मैं से चारउत्पाद,अग्रयणीय,वीर्य-प्रवाद तथा अस्ति-नास्ति-प्रवाद पर चूलिकाएँ हैं। इस प्रकार इनका सम्बन्ध इन चार पूणे से होता है । परिकर्म,सूत्र, पूर्वगत और अनुयोग में उक्त अनुक्त अर्थों-विषयों की संग्राहिका के रूप में भी इनका उल्लेख किया गया है । उसकी संगति किस प्रकार हो सकती है? विभाजन या व्यवस्थापन की दृष्टि से पूर्वो को दृष्टिवाद के भेदों के अन्तर्गत पूर्वगत में लिया गया है । वस्तुतः उनमें समग्रश्रु त की अवतारणा है; अतः परिकर्म, सूत्र, पूर्वगत तथा अनुयोग के विषय भी मौलिकतया उनमें अनुस्यूत हैं ही। ___ चार पूर्वो के साथ चूलिकाओं का जो सम्बन्ध है, उसका अभिप्राय है कि इन चार पूर्वो के सन्दर्भ में इन चुलिकाओं द्वारा सृष्टिवाद के सभी विषयों का, जो वहाँ विस्तृत या संक्षिप्त व्याख्यात हैं, कुछ कम व्याख्यात हैं, कुछ केवल सांकेतिक हैं, विशदरूपेण व्याख्यात नहीं हैं, संग्रह है। इसका आशय है कि चूलिकाओं में दृष्टिवाद के सभी विषय सामान्यतः सांकेतिक हैं. पर, विशेषतः जो विषय परिकर्म, सूत्र, पूर्वगत तथा अनुयोग में विशदतया व्याख्यात नहीं हैं, उनका इनमें प्रस्तुतोकरण है। पहले पूर्व को चार, दूसरे को बारह, तीसरे की पाठ तथा चौथे की दश चूलिकाएँ मानी गयी हैं । इस प्रकार कुल ४+१२+८+१०=३४ चूलिकाएं हैं। वस्तु-वाङ्मय चूलिकाओं के साथ-साथ 'वस्तु' संज्ञक एक और वाङमय है, जो पूर्वो का विश्लेषक या विवर्धक है। इसे पूर्वान्तर्गत अध्ययनस्थानीय ग्रन्थों के रूप में माना गया है ।' श्रोताओं की अपेक्षा से १. पूर्वान्तर्गतेषु अध्ययनस्थानीयेषु ग्रन्यविशेषेषु । -प्रभिधान राजेन्द्र, षष्ठ भाग, पृ० ८७९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002628
Book TitleJainagama Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni, Mahendramuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy