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जैनागम दिग्दर्शन
अशुभ फलात्मक प्रमाद आदि का निरूपण है । पद
परिमाण छब्बीस करोड़ है। १२. प्राणायु-प्रवाद पूर्व-प्राण अर्थात् पांच इन्द्रिय, मानस आदि
तीन बल, उच्छवास-निःश्वास तथा आयु का भेद प्रभेद सहित विश्लेषण है । पद-परिमाण एक करोड़
छप्पन लाख है। १३. क्रिया-प्रवाद पूर्व-कायिक आदि क्रियाओं का, संयमात्मक
क्रियाओं का तथा स्वाच्छान्द क्रियाओं का विशाल
विपुल विवेचन है । पद-परिमाण नौ करोड़ है। १४. लोक बिन्दुसार पूर्व-लोक में या श्रुत-लोक में अक्षर के ऊपर
लगे विन्द की तरह जो सर्वोत्तम तथा सर्वाक्षरसन्निपात लब्धि है, उस ज्ञान का वर्णन है।' पद
परिमाण साढ़े बारह करोड़ है। चूलिकाएं
चूलिकाएं पूर्वो का पूरक साहित्य है। इन्हें परिकर्म, सूत्र, पूर्वगत तथा अनुयोग (दृष्टिवाद के भेदों) में उक्त और अनुक्त अर्थ की संग्राहिका ग्रन्थ-पद्धतियां कहा गया है। दृष्टिवाद के इन भेदों में जिन-जिन विषयों का निरूपण हुआ है, उन-उन विषयों में विवेचित महत्वपूर्ण अर्थों-तथ्यों तथा कतिपय अविवेचित अर्थों-प्रसंगा का इन चूलिकाओं में विवेचन किया गया है। इन चूलिकाओं का पूर्व वाङमय में विशेष महत्व है। ये चूलिकाएं श्रत रूपी पर्वत पर चोटियों की तरह सुशोभित हैं।।
१. लोके जगति श्रुतलोके वा अक्षरस्योपरि बिन्दुरिव सार सर्वोत्तमं सर्वाक्षरसन्निपातलब्धिहेतुत्वात् लोकबिन्दुसारम् ।
-प्रभिधान राजेन्द्र ; चतुर्थ माग, पृ० २५१५. २. यथा मेरौ चूलाः, तत्र चूला इव दृष्टिवादे परिकर्मसूत्रपूर्वानुयोगोक्तानुक्ताथ-- संग्रहपरा प्रन्यपद्धतयः ।
बही : पृ० २५१५
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