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________________ आगम विचार में विवेचन है ।' पद-परिमाण साठ लाख है । ५. ज्ञानप्रवाद पूर्व-मति आदि पांच प्रकार के ज्ञान का विस्तारपूर्वक विश्लेषण है । पद-परिमाण एक कम एक करोड़ है । २३ २ ६. सत्य - प्रवाद पूर्व—- सत्य का अर्थ संयम का वचन है । उनका विस्तारपूर्वक सूक्ष्मता से इसमें विवेचन है । पदपरिमाण छः अधिक एक करोड़ है । ७. प्रात्म-प्रवाद पूर्व - प्रात्मा या जीव का नय-भेद से अनेक प्रकार वर्णन है । पद-परिमाण छब्बीस करोड़ है । ८. कर्म-प्रवाद पूर्व - ज्ञानावरणीय आदि आठ प्रकार के कर्मों का प्रकृति, स्थिति, अनुभाग, प्रदेश आदि भेदों की दृष्टि से विस्तृत वर्णन किया गया है । पद-परिमाण एक करोड़ छियासी हजार है । - ९. प्रत्याख्यान पूर्व – भेद-प्रभेद सहित प्रत्याख्यान त्याग का विवेचन है । पद-परिमाण चौरासी लाख है । १०. विद्यानुप्रवाद पूर्व - अनेक अतिशय - चमत्कार - युक्त विद्याओं का, उनके अनुरूप साधनों का तथा सिद्धियों का वर्णन है । पद-परिमाण एक करोड़ दश लाख है । ११. अवन्ध्य पूर्व - वन्ध्य शब्द का अर्थ निष्फल होता है । निष्फल न होना प्रवन्ध्य है । इसमें निष्फल न जाने वाले शुभ - फलात्मक ज्ञान, तप, संयम आदि का तथा १. यद् वस्तु लोकेऽस्ति धर्मास्तिकायादि, यच्च नास्ति खरशृंगादि तत्प्रवदतीत्यस्तिनास्तिप्रवादम् । अथवा सर्वं वस्तु स्वरूपेणास्ति, पररूपेण नास्तीति श्रस्तिनास्तिप्रवादम् । - अभिधान राजेन्द्र ; चतुर्थ भाग, पृ० २५१५ २. सत्यं संयमो वचनं वा तत्सत्यसंयमं वचनं वा प्रकर्षेण सप्रपंचं वदतीति सत्यप्रवादम् । - प्रभिधान राजेन्द्र ; चतुर्थ भाग, पृ० २५१५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002628
Book TitleJainagama Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni, Mahendramuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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