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जैनागम दिग्दर्शन
लगाव सिद्ध करें, जिससे उसका माहात्म्य बढ़े। निश्चयात्मक रूप में कुछ नहीं कहा जा सकता, पर, सहसा यह मान लेना समाधायक नहीं प्रतीत होता कि पूर्व-श्रत संस्कृत-निबद्ध रहा । पूर्वगत : एक परिचय
पूर्वगत के अन्तर्गत विपुल साहित्य है। उसके अन्तर्वर्ती चौदह पूर्व हैं : १. उत्पाद पूर्व-समग्र द्रव्यों और पर्यायों के उत्पाद या उत्पत्ति को
अधिकृत कर विश्लेषण किया गया है। इसका पद
परिमाण एक करोड़ है। २. अग्रायणीय पूर्व-अग्र तथा अयन शब्दों के मेल से अग्रायणीय
शब्द निष्पन्न हुआ है । अग्र का अर्थ' परिमाण और अयन का अर्थ गमन-परिच्छेद या विशदीकरण है। अर्थात् इस पूर्व में सब द्रव्यों, सब पर्यायों और सब जीवों के परिमाण का वर्णन है। पद-परिमाण
छियानवें लाख है। ३. वीर्यप्रवाद पूर्व-सकर्म और अकर्म जीवों के वीर्य का विवेचन
है। पद-परिमाण सत्तर लाख है। ४. अस्ति-नास्ति-प्रवाद पूर्व-लोक में धर्मास्तिकाय आदि जो हैं
और खर-विषाणादि जो नहीं हैं, उनका इसमें विवेचन है अथवा सभी वस्तुएँ स्वरूप की अपेक्षा से हैं तथा पर-रूप की अपेक्षा से नहीं हैं, इस सम्बन्ध
१. अग्र परिमाणं तस्य प्रयनं गमनं परिच्छेद इत्यर्थः । तस्मै हितमग्रायणीयम्,
सर्वद्र व्यादिपरिमाणपरिच्छेदकारि-इति भावार्थः । तथाहि तत्र सर्वद्रव्याणां सर्वपर्यायाणां सर्वजीवविशेषाणां च परिमाणमुपवर्ण्यते ।
-अभिधान राजेन्द्र : चतुर्थ भाग, पृ० २५१५ २. अन्तरंग शक्ति, सामर्थ्य, पराक्रम ।
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