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भागम विचार
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के कारण दूसरों का परमहित करना उनका स्वभाव है । कमल सूर्य से बोध पाते हैं-विकसित होते हैं, तो क्या सूर्य का उनके प्रति राग है ? सूर्य की किरणों का प्रभाव एक समान है, पर, कमल उससे विकसित होते हैं, कुमुद नहीं होते. तो क्या सूर्य का उनके प्रति द्वष है ? सूर्य की किरणों का प्रभाव एक समान है, पर, कमल उससे जो विकसित होते हैं और कुमुद नहीं होते, यह सूर्य का, कमलों का, कुमुदों का अपना-अपना स्वभाव है। उगा हुअा भी प्रकाशधर्मा सूर्य उल्लू के लिए उसके अपने दोष के कारण अन्धकाररूप है, उसी प्रकार जिन रूपी सूर्य अभव्यों के लिए बोध-रूपी प्रकाश नहीं कर सकते। अथवा जिस प्रकार साध्य रोग की चिकित्सा करता हुआ वैद्य रोगी के प्रति रागी और असाध्य रोग की चिकित्सा न करता या रोगी के प्रति द्वोषी नहीं कहा जा सकता, उसी प्रकार भव्यजनों के कर्म-रोग को नष्ट करते हुए जिनेन्द्ररूपी वैद्य उसके प्रति रागी नहीं होते तथा अभव्य जनों के असाध्य कर्म-रूपी रोग का अपचय न करने से उसके प्रति वे द्वषी नहीं कहे जा सकते । जैसे, कलाकार अनुपयुक्त काष्ठ आदि को छोड़ कर उपयुक्त काष्ठ आदि में रूप-रचना करता हुआ अनुपयुक्त काष्ठ के प्रति द्वषी और उपयुक्त काष्ठ के प्रति अनुरागी नहीं कहा जाता, उसी प्रकार योग्य को प्रतिबोध देते हुए और अयोग्य को न देते हए जिनेश्वर देव न योग्य के प्रति रागी और न अयोग्य के प्रति द्वषी कहे जा सकते हैं।"
१. कीस कहइ कइत्थो किं वा भवियारण चेव बोहत्थं ।
सम्वोपायविहिण्णू कि वाऽभव्वे न बोहेइ ॥ नेगंतेण कयत्थो जेणोदिन्न जिणि दनामं से । तदवंझप्फलं तस्स य खवरणोवाप्रोऽयमेव जयो ।। जं व कयत्थस्स वि से प्रणवकयपरोवगारिसाभब्वं । परमा यदेसयत्त भासयसाभन्वमिव रविणो ॥ कि व कमलेसु रामो रविणो बोहेइ जेण सो ताई। कुमुएसु व से दोसो जं न विबुज्झति से ताई। जं बोह-मउलणाई सूरकरामरिसप्रो समाणाम्रो ।
क्रमशः
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