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प्रागम विचार
१०. अव्याविद्धाक्षर-अ+वि+या+विद्ध के योग से अव्याविद्ध
शब्द बना है। विद्ध का अर्थ बिंधा हुआ है और उसके पहले पा उपसर्ग लग जाने से उसका अर्थ सब ओर से या भलीभाँति बिंधा हुअा हो जाता है । 'या' मे पूर्व लगा 'वि' उपसर्ग बिंध जाने के अर्थ में और विशेषता ला देता है। अक्षर के व्याविद्ध होने का अर्थ है, उसका अपहत होना, पीड़ित होना। अपहनन या पीड़न का प्राशय अक्षरों के विपरीत या
उल्टे पठन से है । वैसा नहीं होना चाहिए। ११. अस्खलित-पाठ का यथाप्रवाह उच्चारण होना चाहिए।
प्रवाह में एक लय (Rhythm) होती है, जिससे पाठ द्वारा व्यज्यमान आशय सुष्ठुतया अवस्थित रहता है; अतएव पाठ में स्खलन नहीं होना चाहिए। अस्खलित रूप में किये जाने वाले पाठ की अर्थ-ज्ञापकता वैशद्य
लिये रहती है। १२. अमिलित-अजागरूकता या असावधानी से किये जाने वाले
पाठ में यह आशंकित रहता है कि दूसरे अक्षर कदाचित् पाठ के अक्षरों के साथ मिल जायें। वैसा होने से पाठोच्चारण की शुद्धता व्याहत हो जाती है। वैसा
नहीं होना चाहिये। १३. अव्यत्यानेडित-अ+वि+अति+पाम्रडित के योग से यह
शब्द बना है। आम्रडित का अर्थ शब्द या ध्वनि की आवृत्ति' है। पाइअ सद्दमहण्णवो में 'वच्चामेलिय' और 'विच्चामेलिय' दोनों रूप दिये हैं। दोनों का एक ही अर्थ है। वहाँ 'भिन्न-भिन्न अंशों से मिश्रित, अस्थान में ही छिन्न होकर चिर ग्रथित तथा तोड़
१. संस्कृत -(क) हिन्दी कोष ; प्राप्टे, पृ० ११५ (ख) Reduplication : Sanskrit-English Dictionary
- Sir Monier M. Williams; p 147.
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