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पैतालीस मागम
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“उच्छखल घोड़े को जिस प्रकार दमित नहीं किया जा सकता, उसी प्रकार वह दुर्दम है। कुछ विचित्र व्युत्पत्तियाँ
नारी-निन्दा के प्रसंग में नारी-अर्थ-द्योतक शब्दों की कुछ विचित्र व्युत्पत्तियां दी गयी हैं। जैसे, नारी के पर्यायवाची 'प्रमदा' शब्द की व्युत्पत्ति करते हुए कहा गया है : 'पुरिसे मत्त करंति त्ति पमयायो।' अर्थात् पुरुषों को मत्त-कामोन्मत्त बना देती है, इसलिए वे प्रमदाएं कही जाती हैं।
महिला शब्द की व्युत्पति इस प्रकार की गयी है : ‘णाणाविहेहि कम्मेहिं सिप्पइयाएहिं पूरिसे मोहंति त्ति महिलाओ।' अनेक प्रकार के शिल्प आदि कर्मों द्वारा पुरुषों को मोहित करने के कारण वे “महिलाएं कही जाती हैं।
प्राकृत में महिला के साथ 'महिलिया' प्रयोग भी नारी के अर्थ में है। स्वार्थिक 'क' जोड़कर यह शब्द निष्पन्न हुआ है। इसका विश्लेषण किया गया है : 'महंतं कलिं जणयंति त्ति महिलियानो' में महान् कलह उत्पन्न करती हैं, इसलिए उन्हें 'महिलियानो' संज्ञा से अभिहित किया गया है। ... 'रामा' की व्युत्पत्ति करते हुए कहा गया है : 'पुरिसे हावभावमाइएहिं रमंति त्ति रामाओ।' हाव-भाव आदि द्वारा पुरुषों को रम्य प्रतीत होने के कारण वे रामा कहीं जाती हैं।
___अंगना की व्युत्पत्ति इस प्रकार की गयी है : 'पुरिसे अंगापुराए करिति त्ति अंगणाग्रो।' अर्थात् पुरुषों के अंगों में अनुराग उत्पन्न करने के कारण वे अंगनाएं कहलाती हैं।
नारी शब्द की व्युत्पति में कहा गया है : 'नारीसमा न नराणं अरीमो त्ति नारीयो।' नारियों के सदृश पुरुषों के लिए कोई अरिशत्रु नहीं है, इस हेतु वे नारी शब्द से संज्ञित हैं।
इन व्युत्पत्तियों से ग्रन्थकार का यह सिद्ध करने का प्रयास स्पष्ट प्रतिभाषित होता है कि नारी केवल नामोपकरण है। नारी को एक कुत्सित और बीभत्स पदार्थ के रूप में चित्रित करने के पीछे
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