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________________ १७४ जैनागम दिग्दर्शन ५, तंदुलवेयालिय (तन्दुलवैचारिक) नाम : अर्थ तन्दुल और वैचारिक; इन दो शब्दों का इसमें समावेश है। तन्दूल का अर्थ चावल होता है और वैचारिक स्पष्ट है ही। प्रस्तुत प्रकीर्णक के इस नाम के सम्बन्ध में कल्पना है कि सौ वर्ष का वृद्ध पुरुष एक दिन में जितने तन्दुल खाता है, उनकी संख्या को उपलक्षित कर यह नामकरण हुआ है।' कल्पना का प्राशय बहुत स्पष्ट तो नहीं है, पर, उसका भाव यह रहा हो कि सौ वर्ष के वृद्ध पुरुष द्वारा प्रतिदिन जितने चावल खाये जा सकते हैं, वे गणना योग्य होते हैं । क्योंकि वृद्धावस्था के कारण सहज ही उसकी भोजन-मात्रा बहुत कम हो जाती है । अर्थात् एक ससीम संख्या-क्रम इससे प्रतिध्वनित होता है। प्रकीर्णक पांच सौ छयासी गाथाओं का कलेवर लिये हुए है। इसमें जीवों का गर्भ में आहार, स्वरूप, श्वासोच्छ्वास का परिमाण, शरीर में सन्धियों की स्थिति व स्वरूप, नाड़ियों का परिमारणे, रोमकूप, पित्त, रुधिर, शुक्र आदि का विवेचन है । वे तो मुख्य विषय हैं ही, साथ-साथ गर्भ का समय, माता-पिता के अंग, जीव की बाला, क्रीडा, मन्दा आदि दश दशाएं, धर्म के अध्यवसाय आदि और भी अनेक सम्बद्ध विषय वर्णित हैं। नारी का हीन रेखा-चित्र प्रस्तुत प्रकीर्णक में प्रसंगोपात्त नारी का बहुत घृणोत्पादक व भयानक वर्णन किया गया है । कहा गया है कि नारी सहस्रों अपराधों का घर है । वह कपट-पूर्ण प्रेम रूपी पर्वत से निकलने वाली नदी है। वह दुश्चरित्र का अधिष्ठान है। साधुओं के लिए वह शत्रुरूपा है। व्याघ्री की तरह वह क्रू रहृदया है। जिस प्रकार काले नाग का विश्वास नहीं किया जा सकता, उसी प्रकार वह अविश्वस्य है । १. तन्दुलानां वर्षशतायुष्कपुरुषप्रतिदिनभोग्यानां संख्याविचारेणोपलक्षितं तन्दुल-वैचारिकम् । अभिधान राजेन्द्र; चतुर्थ भाग, पृ० २१६८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002628
Book TitleJainagama Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni, Mahendramuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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